२१७ उपपति मध्य प्रर स्पष्टभेद मे गति दो तरह की नी है. प्रन में न भिन्न होती है, ६हैं स्पष्टमति है, जो प्रतिक्षण में भिन्न नहीं होती है वह थई है । १४ईन भी टीक पर दात्कालिक भेद मे दो प्रकार की होती है, दैनिकमन्दम्पुष्टनिमलिक मन्दस्पष्टगति, दैनिकस्पष्टगति, तात्कालिकस्पष्टति, प्रचाथ निकमन्दपष्ट्ज पर स्पष्टगति का साधन करते हैं । संस्कृतोपपत्ति में लिखित (क) क्षेत्र को देखिये। भू= भूकेन्द्र, भूल=मन्दान्त्यफलया, ल= ग्रहमन्दगोल केन्द्र, ग्र=मन्दप्रतिवृत में गणितागदमध्यमग्रह । उ=मन्दच्च, ग्रउ=मन्दकेन्द्र, प्रन= मन्दभुजफलमन्दकलज्या स्वल्पान्तर से, प्रम=भूर=मदनेन्द्रज्या, प्रश=षुम्दान्यफलज्या, भ्रम, प्रगान दोनों त्रिभुज सशातीय हैं इसलिये अनुपात करते हैं, मंकेज्या मंऑफज्य =प्रद्यतनभुजफलप्रद्यवनमन्दफनाया, =:मंफल्या, मॅकेज्या मंझंफघ्या =इवस्तनमुजफ़ल=वस्तनमंदफलज्या= मंफया, दोनों का अंतर करने से मंशंफज्या नेअंफज्या x मंकेज्यान्तर 7"मंकंज्या-) = = ( मंकेज्या =मंझज्य-मंफज्या== मन्दफलज्यान्तर-मन्दफलान्तर=मंगतिफल स्वल्पान्तर से, परन्तु मन्दकेगxभवं— = , उत्थापन देने मंकेग xभोखं. मन्दकैन्द्रज्यान्डरसे प्रथमज्या प्रथमवाप मंप्रीफज्या, मंकेगxभो मंशंफज्या मंपरिधि मंपरिधि =मंगतिफल । परन्तु त्रि प्रथमज्य ३६० =ि संपरिधि मंकेग x भोवं मंगातफल, इससे आचार्योंक्त उपपन्न हुम, सिदान्तशेखर में ३६० अयमज्या »= - - ' "भन्दकेन्द्रगतरकंचन्द्रयोः" इत्यादि संस्कृतोपपति में लिखित औपत्युक्तप्रकारतथा सूर्यसिद्धान्तकारोक्त मन्दगति फलानयनप्रकार भी उपपन्न हुआ, उसी मन्दगतिफलस्वरूप में भांश और परिध्रंश को ई इससे प्रपबत्तंन देने से मन्दगतिफस ॐ मंकेगxभोर्च २ परिधि-मंग xभसं स्फुगुणक २ परिधि प्रया २X ३६०
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