पूर्वावमर्शः स इति, पू पौरुषेयीमपेक्षां च, पू प्रचक्षते येऽपि सत्ताम्, पू प्रज्ञाकियोपासनाधि, उ प्रतिपत्तिर्विशिष्टापि, उ प्रतिपत्तिविधौ तुल्यम्, पू प्रतपअन्तर बाघःपू प्रतिष्ठितं न विज्ञानम् , पू प्रत्यक्ष च, यमन उ प्रत्यक्षानुमयोरेवम् उ प्रत्येकमनुविद्धत्वात्, पू प्रयम जायत तस्मात् , पू प्रस्य प्रविलयःउ प्रमाणं कायेविज्ञेयम्, उ प्रमाणयगमात्र चेत्, उ प्रमाणविषयत्वस्य, उ प्रमाणस्य न चैतावत्, उ प्रमाणान्तरगम्येऽर्थे, पू प्रमाणान्तरभिर्यम् , उ प्रमाणान्तरयातार्य, पू प्रमन्त्रसभद:, उ ममन्तरसभदःपू प्रगजान्तरसिडवे, उ प्रमाणान्तरतिद्वयें, पू प्रमत न न जिज्ञासा, उ प्रीनहश्राद्ध, उ. प्रलीनज्ञानबिजय, ड प्रबत्ते यत्तत्रैब, प. |
पुट. काण्ड. कारिका. 98 65 48 95 5B 112 98 185 8 11B 112 104 8 84 71 28 146 8 156 81 17 72 81 98 68 157 4 98 3 67 88 B7 92 43 158 4 101 83 72 95 58 79 1B 79 15 8B 27 151 8 172 102 76 88 38 115 101 95 5 187 117 |
पृष्ठम्:ब्रह्मसिद्धिः (मण्डनमिश्रः).djvu/२८१
दिखावट
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
30
बक्षप्तिडकारकानुक्रमणिका