ब्रह्मसिडिकारि अदृष्टत्वादप्रवृतःपू अदृष्टा संस्कृतिसँन,पू अदृष्टषु प्रबतत,उ अद्वयात्मप्रकाशोऽसौ,पू अतबकतवस्य,उ आधिकारात् प्रवुत्तिश्च,पू अनपेकं प्रमाणत्वम् ,पू अनपत्र्यपक्षत्व,पू अनालम्बनतापत्तिः,उ अनाश्वासाच रजत,पू अनासा जायमान,उ अनुमानादू बुध्यमानःउ अनुवृत्तिमतः पश्यन् पू अनृषीप्रभवे नास्ति, पू अनेकदेशाधिगतम् , पू अनौपचारिकाधीशपू अन्यत्र भेदग्रहणात् , उ अन्यमानावगम्यत्वम्, पू अन्योन्यसंश्रयात्रेदः, उ अन्योन्यसंश्रयानेषःउ अन्योन्याभावरूपत्वम्, पू अपरिच्छिन्दतः किञ्चित्, पू आप चाग्रहणेऽभीष्टम् - पू अपिचज्ञानतः शोकी, उ अपेक्षितोपायतैव, उ अपौरुषेयता तेन, उ अपौरुषेयाणमलधउ अप्रवृत्तिनिवृत्तीदम् |
पुठ. 137 148 187 115 185 118 79 8B 146 186 144 104 141 79 140 149 187 86 57 76 71 145 158 115 8B 155 69 |
काण्ड 3 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 4 |
कारिका. 25 120 165 118 10B 110 97 12 28 157 115 150 150 189 150 16 18 33 171 117 8B 10 29 49 38 152 104 18B |
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ब्रह्मसिद्धिकारिकानुक्रमणिका