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पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/१५५

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अ. १ आ. १ सू. ८

है, उस विभाग का गोलासमवायि कारण है, गोले का कर्म असमवायिकारण है। गोले में जो वेग उत्पन्न हुआ है,उस वेग का गोला समवायि कारण है, गोले का कर्म असमवायिकारण है।

तथारूपं कारणकार्थे समवाया च ॥ ४ ॥

वैसे रूप (कारण ) है, कारण के साथ एक अर्थ में समवाय सं ।

व्या-कर्म की नाई कारण में ममवाय से रूप भी असम वायि कारण होता है । तन्तु वस्त्र का कारण हैं, उस कारण ( तन्तुओं) में समवेत रूप, वस्त्र के रूप का कारण है। क्योंकि वस्त्र के रूप का कारण जो वस्त्र है, वह वस्त्र भी तन्तुओं में समवेत है, औरतन्तुओंकारूपभीतन्तुओं में समवेत है। इस सम्बन्ध से अर्थात् कारण के साथ एक अर्थ में समवाय से, अवयवों का रूप !' अवयवी के रूप का असमवायि कारण होता है। रूप उपलक्षण है-अर्थात् रस गन्ध स्पर्शपरिमाण पृथक्क गुरुत्व द्रवत्व स्नेहभी इसी प्रकार कार्य गुणों के प्रति असमवायि कारण होते हैं ।

संस-गुण गुणों के असमवायि कारण कहे । अव संयोग गुण को द्रव्य का असमवायि कारण बतलाते हैं

कारण समवायात् संयोगः पटस्य ॥ ५ ॥

कारण ( तन्तुओं ) में समवाय से संयोग (तन्तु संयोग) वस्त्र का ( असमवायि कारण) है ।

कारण कारण समवायाच ॥ ६ ॥

कारण के कारण में समवाय से भी (असमवायि कारण होता है। जैसे पृतै रूए बतलाया है। मृहत्र के रूप का कारण है।