अभिघातें से होता है । तथों संयुक्त संयोग से भी होता है । जैसे चलते हुए घोडे संयुक्त रस्से में,रस्से से संयुक्त-रथं में कर्म होता है। रथ के साथदूसरारथ वांधदें, तो उस में भी होता है।
तद्विशेषेण दृष्टकारितम् ॥ २ ॥
चंह विशेषं से अदृष्ट से कराया होता है । ।
व्यां-वह पृथिवी कर्म'जव कभी भूचाल आंदं विशेषरूप में उत्पन्न होता है, तो वह पृथिवी के भीतर जो अंदृष्ट वस्तुएं (अग्रि ऑदि ) है, उन के नोदन वा अभिघात' चा संयुक्त संयोग से होता है ।
संसर्गति-पृथिवी के अनन्तरं जल के कर्म की परीक्षा आरम्भ करते हैं अपां संयोगाभावे उंरुत्वात् पतनम् ॥ ३॥
- ( मेघस्थं ) जलों का ( विधारकं-) संयोगे के अभावै'में
गुरुत्व से पतन होता है (जब जलं कणं इकडे होने से इतनें गुरु हो जाते हैं कि वायु उनको धैरि नह'िसँकंता,तों गुरुत्व के कारण वे नीचे गिर पड़ते हैं; यही घरंसना है)
द्रवत्वात्स्य न्दनम्'।। ४ ।।
द्रवत्व से बहना होता है (अव पृथिवी पर गिरे हुए जल जो वहने लगते हैं, इस में द्रवत्व हेतु है)
नाड्योवायुसंयोगादारोहणम् ॥ ५ ॥
किरणें घायु के सैयोग से (जलों का आकाश में) आरो हण (कराती हैं। वही जs फिर व रूप में गिरते हैं).