आदि शब्द भी आत्मविशेष में मुख्य हैं। शारीर में औपचा रिक हैं। ।
देवदत्तोगच्छतीत्युपचारादभिमानात्तावच्छ रीरप्रत्यक्षोऽहङ्कारः॥ १५ ॥
- देवदत्त जाता है'यह उपचार से (कहना) अभिमान से है,
क्योंकि शारीर को प्रत्यक्ष करान वाला है अहङ्कार । ।
'व्या-(पूर्वपक्षीफिर आशौका करता है)- देवदत्त जाता है। यह तुम्हारा औपचारिक कहना अभिमानमात्र है वास्तव नहीं. क्योंकि- 'मैं गोरा हूं, मैं स्थूल हूँ ? इत्यादि शारीरविषयक ही' अधिकतर मर्योगों से निश्चय होता है, कि अहं प्रतीति शांरीर को प्रत्यक्ष कराती है। ; ।।
सैदिग्धस्तूपचारः ॥, १६ ॥
- सैदिग्ध है उपचार
व्या-(सिद्धान्ती)क्या*देवदत्त जाता है। यहाँउपचार है,वा ‘देवदत्त मुखी है? यहां उपचार है । यह भयोग की दृष्टि से तो सैग्दिघ ही है, क्योंकि शारीर और आत्मा दोनों के लिए एक जैसा ही प्रयोग होता है।
नतुशरीरविशेषाद् यज्ञदत्त विष्णुमित्रयोज्ञानं विषयः ॥ १७ ॥ ' ।
किंन्तु शरीर के भेद से यज्ञदत्त और विष्णुमित्र कंज्ञान विषय नहीं होता । .
व्या-शारीर के साक्षात्कार में यज्ञदत्त और िवष्णुमित्र का ज्ञान विषयं नहीं होता। सो जैसे हमे आत्म साक्षात्कार में ज्ञान