सामग्री पर जाएँ

ब्रह्मपुराणम्/अध्यायः २३५

विकिस्रोतः तः
← अध्यायः २३४ ब्रह्मपुराणम्
अध्यायः २३५
वेदव्यासः
अध्यायः २३६ →
  1. अध्यायः १
  2. अध्यायः २
  3. अध्यायः ३
  4. अध्यायः ४
  5. अध्यायः ५
  6. अध्यायः ६
  7. अध्यायः ७
  8. अध्यायः ८
  9. अध्यायः ९
  10. अध्यायः १०
  11. अध्यायः ११
  12. अध्यायः १२
  13. अध्यायः १३
  14. अध्यायः १४
  15. अध्यायः १५
  16. अध्यायः १६
  17. अध्यायः १७
  18. अध्यायः १८
  19. अध्यायः १९
  20. अध्यायः २०
  21. अध्यायः २१
  22. अध्यायः २२
  23. अध्यायः २३
  24. अध्यायः २४
  25. अध्यायः २५
  26. अध्यायः २६
  27. अध्यायः २७
  28. अध्यायः २८
  29. अध्यायः २९
  30. अध्यायः ३०
  31. अध्यायः ३१
  32. अध्यायः ३२
  33. अध्यायः ३३
  34. अध्यायः ३४
  35. अध्यायः ३५
  36. अध्यायः ३६
  37. अध्यायः ३७
  38. अध्यायः ३८
  39. अध्यायः ३९
  40. अध्यायः ४०
  41. अध्यायः ४१
  42. अध्यायः ४२
  43. अध्यायः ४३
  44. अध्यायः ४४
  45. अध्यायः ४५
  46. अध्यायः ४६
  47. अध्यायः ४७
  48. अध्यायः ४८
  49. अध्यायः ४९
  50. अध्यायः ५०
  51. अध्यायः ५१
  52. अध्यायः ५२
  53. अध्यायः ५३
  54. अध्यायः ५४
  55. अध्यायः ५५
  56. अध्यायः ५६
  57. अध्यायः ५७
  58. अध्यायः ५८
  59. अध्यायः ५९
  60. अध्यायः ६०
  61. अध्यायः ६१
  62. अध्यायः ६२
  63. अध्यायः ६३
  64. अध्यायः ६४
  65. अध्यायः ६५
  66. अध्यायः ६६
  67. अध्यायः ६७
  68. अध्यायः ६८
  69. अध्यायः ६९
  70. अध्यायः ७०
  71. अध्यायः ७१
  72. अध्यायः ७२
  73. अध्यायः ७३
  74. अध्यायः ७४
  75. अध्यायः ७५
  76. अध्यायः ७६
  77. अध्यायः ७७
  78. अध्यायः ७८
  79. अध्यायः ७९
  80. अध्यायः ८०
  81. अध्यायः ८१
  82. अध्यायः ८२
  83. अध्यायः ८३
  84. अध्यायः ८४
  85. अध्यायः ८५
  86. अध्यायः ८६
  87. अध्यायः ८७
  88. अध्यायः ८८
  89. अध्यायः ८९
  90. अध्यायः ९०
  91. अध्यायः ९१
  92. अध्यायः ९२
  93. अध्यायः ९३
  94. अध्यायः ९४
  95. अध्यायः ९५
  96. अध्यायः ९६
  97. अध्यायः ९७
  98. अध्यायः ९८
  99. अध्यायः ९९
  100. अध्यायः १००
  101. अध्यायः १०१
  102. अध्यायः १०२
  103. अध्यायः १०३
  104. अध्यायः १०४
  105. अध्यायः १०५
  106. अध्यायः १०६
  107. अध्यायः १०७
  108. अध्यायः १०८
  109. अध्यायः १०९
  110. अध्यायः ११०
  111. अध्यायः १११
  112. अध्यायः ११२
  113. अध्यायः ११३
  114. अध्यायः ११४
  115. अध्यायः ११५
  116. अध्यायः ११६
  117. अध्यायः ११७
  118. अध्यायः ११८
  119. अध्यायः ११९
  120. अध्यायः १२०
  121. अध्यायः १२१
  122. अध्यायः १२२
  123. अध्यायः १२३
  124. अध्यायः १२४
  125. अध्यायः १२५
  126. अध्यायः १२६
  127. अध्यायः १२७
  128. अध्यायः १२८
  129. अध्यायः १२९
  130. अध्यायः १३०
  131. अध्यायः १३१
  132. अध्यायः १३२
  133. अध्यायः १३३
  134. अध्यायः १३४
  135. अध्यायः १३५
  136. अध्यायः १३६
  137. अध्यायः १३७
  138. अध्यायः १३८
  139. अध्यायः १३९
  140. अध्यायः १४०
  141. अध्यायः १४१
  142. अध्यायः १४२
  143. अध्यायः १४३
  144. अध्यायः १४४
  145. अध्यायः १४५
  146. अध्यायः १४६
  147. अध्यायः १४७
  148. अध्यायः १४८
  149. अध्यायः १४९
  150. अध्यायः १५०
  151. अध्यायः १५१
  152. अध्यायः १५२
  153. अध्यायः १५३
  154. अध्यायः १५४
  155. अध्यायः १५५
  156. अध्यायः १५६
  157. अध्यायः १५७
  158. अध्यायः १५८
  159. अध्यायः १५९
  160. अध्यायः १६०
  161. अध्यायः १६१
  162. अध्यायः १६२
  163. अध्यायः १६३
  164. अध्यायः १६४
  165. अध्यायः १६५
  166. अध्यायः १६६
  167. अध्यायः १६७
  168. अध्यायः १६८
  169. अध्यायः १६९
  170. अध्यायः १७०
  171. अध्यायः १७१
  172. अध्यायः १७२
  173. अध्यायः १७३
  174. अध्यायः १७४
  175. अध्यायः १७५
  176. अध्यायः १७६
  177. अध्यायः १७७
  178. अध्यायः १७८
  179. अध्यायः १७९
  180. अध्यायः १८०
  181. अध्यायः १८१
  182. अध्यायः १८२
  183. अध्यायः १८३
  184. अध्यायः १८४
  185. अध्यायः १८५
  186. अध्यायः १८६
  187. अध्यायः १८७
  188. अध्यायः १८८
  189. अध्यायः १८९
  190. अध्यायः १९०
  191. अध्यायः १९१
  192. अध्यायः १९२
  193. अध्यायः १९३
  194. अध्यायः १९४
  195. अध्यायः १९५
  196. अध्यायः १९६
  197. अध्यायः १९७
  198. अध्यायः १९८
  199. अध्यायः १९९
  200. अध्यायः २००
  201. अध्यायः २०१
  202. अध्यायः २०२
  203. अध्यायः २०३
  204. अध्यायः २०४
  205. अध्यायः २०५
  206. अध्यायः २०६
  207. अध्यायः २०७
  208. अध्यायः २०८
  209. अध्यायः २०९
  210. अध्यायः २१०
  211. अध्यायः २११
  212. अध्यायः २१२
  213. अध्यायः २१३
  214. अध्यायः २१४
  215. अध्यायः २१५
  216. अध्यायः २१६
  217. अध्यायः २१७
  218. अध्यायः २१८
  219. अध्यायः २१९
  220. अध्यायः २२०
  221. अध्यायः २२१
  222. अध्यायः २२२
  223. अध्यायः २२३
  224. अध्यायः २२४
  225. अध्यायः २२५
  226. अध्यायः २२६
  227. अध्यायः २२७
  228. अध्यायः २२८
  229. अध्यायः २२९
  230. अध्यायः २३०
  231. अध्यायः २३१
  232. अध्यायः २३२
  233. अध्यायः २३३
  234. अध्यायः २३४
  235. अध्यायः २३५
  236. अध्यायः २३६
  237. अध्यायः २३७
  238. अध्यायः २३८
  239. अध्यायः २३९
  240. अध्यायः २४०
  241. अध्यायः २४१
  242. अध्यायः २४२
  243. अध्यायः २४३
  244. अध्यायः २४४
  245. अध्यायः २४५
  246. अध्यायः २४६

योगाभ्यासनिरूपणम्
मुनय ऊचुः
इदानीं ब्रूहि योगं च दुःखसंयोगभेषजम्।
यं विदित्वाऽव्ययं तत्र युञ्जामः पुरुषोत्तमम्।। २३५.१ ।।

श्रुत्वा स वचनं तेषां कुष्णद्वैपायनस्तदा।
अब्रवीत्परमप्रीतो योगी योगविदां वरः।। २३५.२ ।।

योगं वक्ष्यामि भो विप्राः श्रृणुध्वं भवनाशनम्।
यमभ्यस्याऽऽप्नु याद्योगी मोक्षं परमदुर्लभम्।। २३५.३ ।।

श्रुत्वाऽऽदौ योगशास्त्राणि गुरुमाराध्य भक्तितः।
इतिहासं पुराणं च वेदांश्चैव विचक्षणः।। २३५.४ ।
आहारं योगदोषांश्च देशकालं च बुद्धिमान्।
ज्ञात्वा समभ्यसेद्योगं निर्द्वद्वो निष्परिग्रहः।। २३५.५ ।।

भुञ्जन्सक्तुं यवागूं च तक्रमूलफलं पयः।
यावकं कणपिण्याकमाहारं योगसाधनम्।। २३५.६ ।।

न मनोविकले ध्माते न श्रान्ते क्षुधिते तथा।
न द्वंद्वे न च शीते च न चोष्णे नानिलात्मके।। २३५.७ ।।

सशब्दे न जलाभ्यासे जीर्णगोष्ठे चतुष्पथे।
सरीसृपे श्मशाने च न नद्यन्तेऽग्निसंनिधौ।। २३५.८ ।।

न चैत्ये न च वल्मीके सभये कूपसंनिधै।
न शुष्कपर्णनिचये योगं युञ्जीत कर्हिचित्।। २३५.९ ।।

देशानेताननादृत्य मूढत्वाद्यो युनक्ति वै।
प्रवक्ष्ये तस्य ये दोषा जायन्ते विघ्नकारकाः।। २३५.१० ।।

बाधिर्यं जडता लोपः स्मृतेर्मूकत्वमन्धता।
ज्वरश्च जायते सद्यस्तद्वदज्ञानसंभवः।। २३५.११ ।।

तस्मात्सर्वात्मना कार्या रक्षा योगविदा सदा।
धर्मार्थकाममोक्षणां शरीरं साधनं यतः।। २३५.१२ ।।

आश्रमे विजने गुह्ये निःशब्दे निर्भये नगे।
शून्यागारे शुचौरम्ये चैकान्ते देवतालये।। २३५.१३ ।।

रजन्याः पश्चिमे यामे पूर्वे च सुसमाहितः।
पूर्वाह्णे मध्यमे चाह्नि युक्ताहारो जितेन्द्रियः।। २३५.१४ ।।

आसीनः प्राङ्मुखो रम्य आसने सुखनिश्चले।
नातिनीचे न चोच्छ्रिते निस्पृहः सत्यवाक्शुचिः।। २३५.१५ ।।

युक्तनिद्रो जितक्रोधः सर्वभूतहिते रतः।
सर्वद्वंद्वसहो धीरः समकायाङ्‌घ्रिमस्तकः।। २३५.१६ ।।

नाभौ निधाय हस्तौ द्वौ शान्तः पद्‌मासने स्थितः।
संस्थाप्य दृष्टिं नासाग्रे प्राणानायम्य वाग्यतः।। २३५.१७ ।।

समाहृत्येन्द्रियग्रामं मनसा हृदये मुनिः।
प्रणवं दीर्घमुद्यम्य संवृतास्यः सुनिश्चलः।। २३५.१८ ।।

रजसा तमसो वृत्तिं सत्त्वेन रजसस्तथा।
संछाद्य निर्मलं शान्ते स्थितः संवृतलोचनः।। २३५.१९ ।।

हृत्पद्‌मकोटरे लीनं सर्वव्यापि निरञ्जनम्।
युञ्जीत शान्ते स्थितः संवृतलोचनः।। २३५.२० ।।

करणेन्द्रियभूतानि क्षेत्रज्ञे प्रथमं न्यसेत्।
क्षेत्रज्ञश्च परे योज्यस्ततो युञ्जति योगवित्।। २३५.२१ ।।

मनो यस्यान्तमभ्येति परमात्मनि चञ्चलम्।
संत्यज्य विषयांस्तस्य योगसिद्धिः प्रकाशिता।। २३५.२२ ।।

यदा निर्विषयं चित्तं परे ब्रह्मणि लीयते।
समाधौ योगयुक्तस्य तदाऽभ्येति परं पदम्।। २३५.२३ ।।

असंसक्तं यदा चित्तं योगिनः सर्वकर्मसु।
भवत्यानन्दमासाद्य तदा निर्वाणमृच्छति।। २३५.२४ ।।

शुद्धं धामत्रयातीतं तुर्याख्यं पुरुषोत्तमम्।
प्राप्य योगबलाद्योगी मुच्यते नात्र संशयः।। २३५.२५ ।।

निःस्पृहः सर्वकामेभ्यः सर्वत्र प्रियदर्शनः।
सर्वत्रानित्यबुद्धिस्तु योगी मुच्येत नान्यथा।। २३५.२६ ।।

इन्द्रियाणि न सेवेन वैराग्येण च योगवित्।
सदा चाभ्यासयोगेन मुच्यते नात्र संशयः।। २३५.२७ ।।

न च पद्‌मासनाद्योगो न नासाग्रनिरीक्षणात्।
मनसश्चेन्द्रियाणां च संयोगो योग उच्यते।। २३५.२८ ।।

एवं मया मुनिश्रेष्ठा योगः प्रोक्तो विमुक्तिदः।
संसारमोक्षहेतुश्च किमन्यच्छ्रोतुमिच्छथ।। २३५.२९ ।।

लोमहर्षण उवाच
श्रुत्वा ते वचनं तस्य साधु साध्विति चाब्रुवन्।
व्यासं प्रशस्य संपूज्य पुनः प्रष्टुं समुद्यताः।। २३५.३० ।।

इति श्रीमहापुराणे आदिब्राह्मे व्यासर्षिसंवादे योगाभ्यासनिरूपणं नाम पञ्चत्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। २३५ ।।