पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/३२

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स्वाराज्य सिद्धिः

(एवम्) जीवात्मा की तरह जगत् कारण रूप ईश्वर में भी मत भेद हैं, वे अब दिखाये जाते हैं । (केपि) कोई कपिलमत वाले श्राचार्य (प्रकृतिम्) प्रधान को ही (विश्वस्य हेतुम् ) जगत् की उपादान कारण (अभिदधुः) कहते हैं और (केचित्) बौद्ध मत वाले तथा जैन आर्हत मत वाले नास्तिक लोग (परा एन) वायु, अग्,ि जल और पृथिवी इन भूत चतुष्टय के पर माणुओं को ही (विश्वस्यहेतु अभिद्धुः ) जगत् का उपादान कारण कहत ह । इस प्रकार विश्वस्य इस पाठ का सर्वत्र अन्वयः कर लेना । ( कतिचन) पांतजल महर्षि के मत वाले, कणाद् महर्षि के मत वाले तथा गौतम महर्षि के मत वाले श्राचार्य (इंशेनाधिष्ठितान् ) ईश्वर करके प्रेरे हुए परमाणुओं को तथा ईश्वर की प्रेरी हुई प्रकृति को जगत् का उपादान कारण कहते हैं। इनमें ईश्वर प्रेरित प्रकृति जगत् का कारण है यह पांतजलों का मत है ऐसा विभाग जान लेना । श्लोक में ' ईश्वराधिष्ठित’ पद के ईश्वर शब्दको एक शेष द्वंद्व समझना चाहिये, जिससे उस संपूर्ण पदका अर्थ 'ईश्वर और प्रकृति से अधिष्ठित’ ऐसा होता है।

(कतिचित्) और कोई विज्ञानवादी नास्तिक बौद्ध (नश्वर ज्ञानमेव ) क्षणिक विज्ञान को ही जगत् का कारण कहते हैं, (अन्ये) इन बौद्धों से भिन्न माध्यमिक नाम वाले नास्तिक बौद्ध (शून्यम्) शून्य को ही जगत् का कारण कहते हैं और ( कतिचन ) कोई नास्तिक लोकायतिक ( स्वभावम्) स्वभाव को ही जगत् का कारण कहते हैं। यहां पाठान्तर में (हैरण्यगर्भ ) हैरण्यगर्भ को ही जगत् का कारण कहते हैं, यह अर्थ है । (केपि) कोई मौहूर्तिक अर्थात् महूर्त शोधने वाले ज्योतिष शास्त्रवेत्ता श्राचार्य (समयम्) काल को ही जगत् का कारण कहते हैं। (केचित्) कोई पंडित जन (यदृच्छा). यदृच्छा