पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/३०

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स्वाराज्य सिद्धिः

अन्ये विद्विषयं परे तु परम स्वज्योतिराभ्यंतरं

सत्येव श्रुति युक्तिभिर्विविदिषोयुक्तो विचारो

मुहुः ।।१३।।

काइ उस श्रात्मा को अणु कहते हैं, कोई शरीर के समान कहते हैं और कोई विभु कहते हैं। ये तीनों उमे मानस गोचर कहते हैं और इनसे भिन्न कोई श्रात्मा को नित्य और अनुमान गम्य कहते हैं । कोई अन्य वृत्तिज्ञानको प्रकाशगने वाला कहत हैं ओर कोई श्राभ्यन्तर परमात्म ज्योति स्वरूप कहते हैं, ऐसा मतभेद है। इसलिये मुतुओं का श्रुतं युक्त स वारंवार विचार करना चाहिये ॥१३॥

( केचित्) पाशुपत पांचरात्र श्रादिक शास्र के कई पंडित जन (सं ) उस आत्मा को (अणुमू) परमाणु परिमाण वाला (श्राहुः) कहते हैं । (केचित्) कोई जैन मत वाले (देह सद्य शम्) उस श्रात्मा को जितना शरीर लम्बा चौड़ा है उतने ही परिमाण वाला कहते हैं । (परे) उनसे भिन्न नैयायिक आदिक उस आत्मा को ( विभुम्) व्याए.क कहते हैं । (ते) ये उक्त तीनों वादी (तम्) उस श्रात्मा को (मानसगोचरम्) मानस प्रत्यक्ष का विषय (जगुः) कहते हैं और (तदपरे) इनसे भिन्न सांख्यादि मत वाले उस आत्मा को (नित्यानुमेयम्) विषयों को वह प्रकाश करता है इत्यादि हेतु से केवल अनुमान गम्य कहते हैं । (अन्ये) इनसे भिन्न वैनाशिक बौद्ध (चिद्विषयम्) उस आत्मा को वृत्ति ज्ञान से प्रकाश्य कहते हैं