पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२९

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

प्रकरण १ श्लो० १२ [ २१ कोई श्रात्मा चित्जड़ रूप और कोई सत्य ज्ञानानंद अद्वि तीय है ऐसा कहते हैं। इनसे क्या निश्चय होता है? कोई भी नहीं ॥१२॥ ( केपि) कोई नास्तिक चार्वाक (देहम्) इस स्थूल शरीरको ही आत्मा (वदन्ति ) कहते हैं ! (परे) दूसरे चार्वाक (खानि) इन्द्रयों को ही आत्मा कहते हैं। (अपरे) दूसरे हैरण्यगर्भ (प्राणान्) पंच विध वृत्ति वाले प्राणों को ही आत्मा कहते हैं। (अपरे) इससे भिन्न और कोई (मनः) को ही आत्मा कहते हैं। (परे) दूसरे वैनाशिक बौद्ध (क्षणिकां बुद्धिं) दीप कलिकावत् क्षण क्षण में नाश होने वाली वृत्ति ज्ञान रूप बुद्धि को ही आत्मा कहते हैं, (परे) बौद्धों से भिन्न भास्करादिक पंडित जन (स्थिरां बुद्धिं) विज्ञानमयकोशको ही आत्मा कहते हैं (केचित्) और कोई सांख्य पातंजलादिक (निःसुखाम्)सुखदुःखा दिकों के संबंध से रहित (चितम्) चिन्मात्र आत्मा है, ऐसा कहते हैं। (अपरे) और दूसरे भाट्ट (जड़ चित्स्वभावम् आत्मानम्)) जड़ और चेतनरूप श्रात्मा है ऐसा कहते हैं। (इतरे) इनसे भिन्न प्राभाकर और नैयायिक आदिक (चिज्जड़म्) चिद् युक्त ज्ञान गुणक जड़ द्रव्य रूप आत्मा है ऐसा प्रतिप्रादन करते हैं (अपरे) श्रौर इन सब से भिन्न वेदांतमत वाले (सत्य ज्ञान सुखाद्वितीयम्) श्रात्मा निर्विशेष नित्य ज्ञानानन्द स्वरूप है ऐसा कहते हैं।(तत्र) उक्त पक्षों में (श्रस्य) इस जिज्ञासु को (को निश्चय:) क्या निश्चय हो सकता है ? कोई भी निश्चय नहीं हो सकता ॥१२॥ आहुः केचिदणु शरीर सदृशं केचिद्विभु तं परे ते तं मानस गोचरं तदपरे नित्यानुमेयं जगुः ।