पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२८

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

२० ] स्वाराज्य सिद्धि अनुभव की हुई भी (देहाध्यास दाढर्यात्) असंख्य जन्मों में द्वैत वासना से देह पुत्र आदिकों में प्रहंता ममता रूप तादात्म्या ध्यास के दृढ़ होने से अर्थात् विपरीत भावना के छढ़ होने से (सहसा) शीघ्र ही (नैव संभावनीयम्)संभावितनहींकी जाती । भाव यह है कि उत्पन्न हुआ भी सो ब्रह्मात्मा का एकत्व ज्ञान जिन अधिकारियों के विपरीत भावना और असंभावना से प्रतिबद्ध होता है उन अधिकारियों को (तस्मात्) उक्त लक्षण ज्ञान के प्रतिबद्ध होनेरूप हेतुसे(नय गुरुवचनैः) युक्तिकर और श्रीगुरु के उपदेशों से (साधु) जैसे हैं तैसे ही (मीमांसनीयम्) अपनी ब्रह्म रूपताके निश्चय पर्यन्त विचार करना चाहिए।॥११॥ अब पहिले विचारके अंग भूत जीवके विषय में अनेक मतों को दिखलाया जाता है। शार्दूल विक्रीडित छद । देहं केऽपि वदन्ति खानि तु परे प्राणान् मनश्चापरे बुद्धिं च क्षणिकां स्थिरामथ परे केचित् चितं नि:सुखाम् । आत्मानं जड चिल्स्व भावमपरे चिद्वज्जडंचेतरे सत्य ज्ञानसुखाद्वितीय मपरे तत्रास्य को निश्चयः ॥१२॥ कोई देह को, कोई इन्द्रिय को, कोई प्रारण को, कोई मन की, कोई क्षणिक बुद्धि को और कोई स्थिर बुद्धि को श्रात्मा कहते हैं। कोई सुख दुःखादि रहित चेतनमात्र को आत्मा कहते हैं, कोई चिजड स्वभाव वाला,