पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२३०

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स्वाराज्य सिद्धिः


अन्य की अपेक्षा न होने से स्वभाव से ही प्रकाश चैतन्य की अपरोक्षता मुख्य है। परंतु श्रावरण रहित अन्य वस्तु के ज्ञान में वस्तु की अपरोक्षता गौण है, क्योंकि वहां वस्तु के तादात्म्य की अपेक्षा है। बाहर के घटादिक विषय में इन्द्रिय जन्य वृत्ति से चैतन्य का योग हो यह योग्य ही है परंतु महावाक्य से उत्पन्न हुई वृत्ति चेतन के श्रावरण करने वाले श्रज्ञान मात्र का नाश करती हैं श्रॉर स्वम्प का स्फुरण तो स्वतः सिद्ध ही है ॥७॥

( स्वरस निजद्रशः चैतन्यस्य अपरोच्यं मुख्यम्) स्वभावं में ही स्वप्रकाश चैतन्य की अपरोक्षता मुख्य है (अन्यानपेक्षम्) वेतन की श्रपरोक्षता अन्य किसी की अपेक्षा नं रखते हुए है । भाव यह है कि रमत्रर्वान्नर चेतन स्वप में स्वश्रभेद की सिद्धि म्वत: सिद्ध है । वृति निर्गमन के लिये बहिर्मुख इन्द्रियों की वहां अपेक्षा नहीं है । (तन् गोचरेषु श्रावरणरहिते तत्र तादात्म्यवत्सु गौगम् ) साक्षी चेतन आत्मा के विपय जो ज्ञाता ज्ञान ज्ञेय हैं तथा श्रावरा रहित साक्षी श्रात्मा में तादात्म्य श्रध्यास द्वारा जो कल्पित हैं उन ज्ञाता ज्ञान ज्ञेय श्रादिकों की अपरोक्षता गौण हैं इसलिये ( बाह्य चैतन्ययाग घटयितु' श्रक्षप्रसूता बृत्ति उचिना ) बहिभूत घट आदि विषयों में चैतन्य के संबंध घटाने के लिये इन्द्रिय जन्य 'वृत्ति की श्रपेक्षा योग्य ही है । श्रथन् बाह्य घट श्रादिक विपयों के प्रत्यक्ष में अंत:करण की वृत्ति इन्द्रिय द्वारा घट आदि विपय देश में जाकर घट आदि में स्थित चेतन के श्रावरण को भंग करती है। वहां विषय में रहे