पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/१३७

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पट स्फाटिके रक्त रूपं माञ्जिष्ठं साध रक्तः

पट इति न मृषा स्फाटिके तन्मृषेति ॥१३॥

शुक्ति रजत को दिखलाने वाली एक ब्रह्मसत्ता ही है परन्तु व्यवहार म ब्रह्म बाध पयत जगत् सत्य ह इस प्रकार की बुद्धि होती है और दूसरी अथत शुक्ति रजत की प्रतीति है वह केवल प्रतीति के समय ही सत्य है। जैसेस वस्र और स्फटिक में मंजिष्ट सम्बंधी लाल रूप है तो भी रक्त पट है यह ज्ञान मिथ्या नहीं है सत्य ही है और स्फटिक में वह मिथ्या ही है ॥१३॥ ( व्यवहति विषये) क्रय विक्रय आदि व्यवहार के श्रास्पद् रजत आदिकों में (शुक्ति रूप्यादिकेच) और शुक्तिमें प्रतीत हुए रजत आदिकों में (ख्यांती) भासमान अर्थातू प्रतीयमान (ब्रह्मसतैव एका) केवल एक ब्रह्म सत्ता हाह तथापि (श्राद्य ) क्रयविक्रयादि व्यवहारके विषय भूत बाजारमें स्थित रजत आदिकों में (आब्रह्मबोधात्) ब्रह्म के साक्षात्कारपयन्त (एतज्जगत् सत्यम्) यह जगत् सत्य है । (इति धियं विधत्ते ) इस प्रकार की प्रतीति सबको होती है और (द्वितीये) दूसरे शुक्ति रजतादिकों में (यावत् स्फूर्ति ) यह रजत है इस प्रकार की प्रतीति पर्यन्त ही यह रजत सत्य है इस प्रकार की प्रतीति होती है। क्योंकि यह रजत नहीं है इस प्रकार श्रति शीघ्र ही शुक्ति रजत का बाध प्रवृत्त होजाता है । अर्थ यह है, शुक्ति रजत आदिकों की प्रातिभासिक सत्ता है, क्योंकि शुक्ति रजत आदिकों का ब्रह्मज्ञान होने के प्रथम ही ९ स्वा. सि.