पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/१३८

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प्रकरणं १ श्लो० ३

स्वाराज्य सिद्धिः}}

बाध होजाता है। शंका-एक ही कल्पक दो प्रकार की सत्ताकी कल्पना कैसे कर सकता है ? समाधान-जैसे एक ही पुरुष स्वप्न गिरि, नदी, समुद्र, मम देवता, ईश्वर आदिक पदार्थो को चिरकाल स्थायी कल्पना करता है और शुक्ति रजत आदिकों को अल्पकाल स्थायी कल्पना करता है, क्योंकि स्वप्न ही में शुक्तिरजत के बाध का भी अनुभव कर लेता है, तैसे ही एक ही ब्रह्मा की दो प्रकार की सत्ता वाले पदार्थ की कल्पना करता है। इसलिये यहां किसी प्रकार की शशंका नहीं होनी चाहिये । अब उक्त अर्थ में आचार्य आपही दृष्टांत को दिखलाते हैं । (पटस्फटिके प्रथितं मांजिष्ठम्) जैसे वस्त्र में तथा स्फटिक के कार्य कुडिका ( पात्रविशेष ) आदिकों में प्रतीत हुआ मंजिष्ठ का लाल रूप परमार्थ से मंजिष्ठ के श्रावयवों में ही स्थित है तथापि (पटे रक्तः पट: इति ) वस्त्र में यह रक्तपट है इस प्रकार यह ज्ञान (न मृषा) मिथ्या नहीं हैं, किन्तु (साधु) सत्य ही है । ( स्फाटिके) और स्फटिक का कार्य कुडिका में (तत् रक्त: स्फटिक: ) इस प्रकार का ज्ञान (मृषा) मिथ्या ही है। इसी प्रकार एक ही सत्ता के बाधाबाध की व्यवस्था जान लेनी चाहिये ॥१३॥ यदि ब्रह्म सन्मात्र है तो सामान्य और विशेषरूप दो श्रशों वाले ही अधिष्ठान होने से एक रस निर्विशेष सन्मात्र ब्रह्म अधिष्ठान का संभव नहीं । सब अधिकारी सुख के चाहने वाले हीने से ब्रह्मार्थी भी कोई नहीं होगा और ब्रह्म को सचिदानंद मानने पर एकरस्य निरवयवत्वादिकों की हानि होगी । इस प्रकार की शंका का अब सभाधान करते हैं सवित्सौख्यैकरस्येऽप्यनृत जड महादुःख