पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९९०

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शंततमोऽध्यायः मेरुसावर्णनस्ते वै दृष्टा वै दिव्यदृष्टिभिः | दक्षस्य ते हि रोहित्राः प्रियाया दुहितुः सुताः महता तपसा युक्ता मेरुपृष्ठे महौजसः । ब्रह्मादिभिस्ते जनिता दक्षेणैव च धीमता महर्लोकगताऽऽवृत्य + भविष्या मेरुमाश्रिताः । महाभावास्तु ते पूर्वं जज्ञिरे चाक्षुषेऽन्तरे ऋषय उवाच दक्षेण जनिताः पुत्राः कन्यायामात्मनः कथम् । भवेन ब्रह्मणा चैव धर्मेण च महात्मनः सूत उवाच अतो भविष्यान्वक्ष्यामि सावर्णमनवस्तु ये | तेषां जन्म प्रभावं च नमस्कृत्य प्रचेतसे वैवस्वते ह्यपस्पृष्टे किंचिच्छिष्टे च चाक्षुषे । जज्ञिरे मनवस्ते हि अविष्यानागतान्तरे प्राचेतसस्य दक्षस्य दौहित्रा मनवस्तु ये | सावर्णा नामतः पञ्च चत्वारः परमर्षिजा: संज्ञा पुत्रस्तु सावर्ण एको वैवस्वतस्तथा । ज्येष्ठः संज्ञामुतो नाम मनुर्वैवस्वतः प्रभुः वैवस्वतेऽन्तरे प्राप्ते समुत्पत्तिस्तयोः शुभा । चतुर्दशैते मनवः कीर्तिताः कीर्तिवर्धनाः ६६र्द ॥२४ ॥२५ ॥२६ फा०-१२२ ।।२७ ॥२८ ॥२६ ॥३० ॥३१ ॥३२ देखते हैं । वे मनुगण दक्ष के नाती एवं उनकी प्रियतमा पुत्री के पुत्र हैं, वे परम तेजस्वी, महान् तपस्वी एवं सुमेरु के पृष्ठ पर निवास करनेवाले हैं, वे ब्रह्मादि देवगणों द्वारा तथा परम बुद्धिमान् दक्ष द्वारा उत्पन्न हुए हैं। वे महलोंक वासी हैं, वहां से भाकर सुमेरु के पृष्ठ भाग पर आश्रय लेते हैं, पूर्व चाक्षुष मन्वन्तर में उन महानुभावों की उत्पत्ति हुई थी | २३-२६॥ ऋषियों ने पूछा:- सूत जी ! दक्ष में अपनी कन्या में पुत्रों को उत्पत्ति किस प्रकार की ? और शंकर, ब्रह्मा एवं धर्म द्वारा इन महात्मा मनुगणों की उत्पत्ति किस प्रकार हुई ? |२७| सूत बोले:- ऋषिवृन्द ! प्रचेता को प्रणाम कर अब में भविष्य में उत्पन्न होनेवाले साव मनुगणों के जन्म वृत्तान्त प्रभाव आदि का वर्णन कर रहा हूँ । चाक्षुष मन्वन्तर के कुछ शेष रह जाने पर जब वैवस्वत मन्वन्तर का प्रारम्भ हो जाता है, उसी समय उन भविष्यकालीन मनुगणों को उत्पत्ति होती है । उनमें पाँच सावर्ण मनुगण पशुपति दक्ष के नाती, चार मनुगण परम ऋषियों द्वारा समुत्पन्न तथा एक सावर्ण मनु विवस्वान् के संयोग से छाया संज्ञा के पुत्र है | संज्ञा के ज्येष्ठ पुत्र परम ऐश्वर्यशाली वैवस्वत मनु इन सावर्ण मनु से ज्येष्ठ है । चैवस्वत मन्वन्तर के आने पर इन दोनों मनुओं की कल्याणी उत्पत्ति होती है । परम यशस्वी इन मनुगणों की संख्या चौदह कही जाती है | २८-३२॥ वेद, श्रुति, पुराण आदि में सर्वत्र ये मनुगण 1 + अत्र संधिरार्ष: ।