पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९९१

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६७० घायुपुराणम् वेदे श्रुतौ पुराणे च सर्वे तै प्रभविष्णवः । प्रजानां पतयः सर्वे भूतानां पतयः स्थिताः तैरियं पृथिवी सर्वा सप्तद्वोपा सपर्वता । पूर्ण युगसहस्रं वै परिपाल्या नरेश्वरैः प्रजाभिस्तपसा चैव विस्तरं तेषु वक्ष्यते । चतुर्दशैव ते ज्ञेयाः सर्वाः स्वायंभुवादयः मन्वन्तराधिकारेषु वर्तन्तेऽत्र सकृत्सकृत् । विनिवृत्ताधिकारास्ते महर्लोकं समाश्रिताः समतीतास्तु ये तेषामण्टौ षष्ठास्तथाऽपरे । पूर्वेषु सांप्रतश्चायं शान्तिर्वैवस्वतः प्रभुः ये शिष्टास्तान्प्रवक्ष्यामि सह देवषिदानवैः । सह प्रजानिसर्गेण सर्वास्त्वनागतान्द्विजान् वैवस्वत निसर्गेण तेषां ज्ञेयस्तु विस्तरः | अन्यूना नातिरिक्तास्ते यस्मात्सर्वे विवस्वतः पुनरुक्ता बहुत्वात्तु न वक्ष्ये तेषु विस्तरम् | मन्वन्तरेषु भाव्येषु भूतेष्वपि तथैव च कुले कुले निसर्गास्तु तस्माद्भूयो विभागशः | तेपामेव हि सिध्यर्थं विस्तरेण क्रमेण च दक्षस्य कन्या धर्मिष्ठा सुव्रता नाम विश्रुता । सर्वकन्यावशिष्टा तु श्रेष्ठा धर्मपरा सुता ॥ गृहीत्वा तां पिता कन्यां जगाम ब्रह्मणोऽन्तिके ॥३३ ॥३४ ॥३५ ॥३६ ॥३७ ॥३८ ॥३ १४० ॥४१ ॥४२ परम प्रभावशाली, प्रजापति सभी जीव निकायों के अधीश्वर के रूप में वर्णित किये गये हैं । इन्ही नरेश्वर मनुगणों द्वारा सातों द्वीपों एवं पर्वतों समेत यह वसुन्धरा सहस्र युगों तक परिपालित होती है। उन मन्वन्तरों में होनेवाली प्रजा, तपस्या एवं सृष्टि विस्तार का वर्णन कर रहा हूं। स्वायम्भुव मनु आदि को वह सृष्टि चौदह हो जाननी चाहिये |३३-३५१ मनुगण अपने-अपने मन्वन्तराधिकार में एक-एक बार घर्तमान रहते हैं। जब अधिकार से वे निवृत्त हो जाते है, तव महर्लोक में अवस्थित होते हैं। उन चौदह मनुओं में आठ के अधिकार काल समाप्त हो गये हैं, छः मनुओं का अधिकार काल शेष है। सप्त पूर्व मन्वन्तरों के समाप्त हो जाने पर सम्प्रति वैवस्वत मनु का अधिकार काल चल रहा है, अब जो शेप मनुगण हैं, उनके अधिकार काल का वर्णन, उस समय के देवताओं, ऋषियों, दानवों, एवं ब्राह्मणादि द्विजातियों की सृष्टि परम्परा के साथ वतला रहा हूँ |३६-३८ वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तर की सृष्टि विस्तार के द्वारा ही अन्य मन्वन्तरों की सृष्टि का विस्तार जानना चाहिये । वैवस्वत मन्वन्तर की सृष्टि से समान ही उनको भी सृष्टि होती है, उनमें कुछ भी विशेषता वा न्यूनता नही रहती | भूतवभावी मन्वन्तरों में प्रत्येक वेशों में जो सृष्टि होती है, उसका पुनरुक्ति और अधिकता के भय से विस्तार पूर्वक वर्णन नहीं कर रहा हूँ । केवल उनका विभाग पूर्वक विस्तार एवं क्रम बतला रहा हूँ । दक्ष प्रजापति की एक सुव्रता नामक परम धार्मिक यशस्विनी कन्या थो । वह अन्य कन्याओं से छोटी होती हुई भी गुणों में श्रेष्ठ एवं धर्म परायण थी । पिता दक्ष एकबार अपनी उस कन्या को साथ लेकर ब्रह्मा के समीप गये |३९-४२॥ पितामह ब्रह्माजी उम समय धर्म और भव के