पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९८४

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नवनवतितमोऽध्यायः अतीता वर्तमानाश्च तथैवानागताश्च ये | ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्राश्चैदान्वये स्मृताः युगे युगे महात्मानः समतीताः सहस्रशः | बहुत्वन्नामधेयानां परिसंख्या कुले कुले पुनरुक्तबहुत्वाच्च न मया परिकतताः । वैवस्वतेऽन्तरे ह्यस्मिन्निमिवंशः समाप्यते एतस्यां तु युगाख्यायां यतः क्षत्रं प्रपस्यते । तथा हि कथयिष्यामि गदतो से निबोधत देवापिः पौरवो राजा इक्ष्वाकोश्चैव यो मतः । महायोगबलोपेतः कलापग्राममास्थितः देवापिः पौरवौ राजा इक्ष्वाकोस्तु भविष्यति । एतौ क्षत्रप्रणेतारो चतुर्विंशे चतुर्युगे न च विशे युगे सोमवंशस्याऽऽदिर्भविष्यति । देवापिरसपत्नस्तु ऐलादिर्भविता नृपः क्षत्रप्रवर्तको ह्येतो भविष्येते चतुर्युगे । एवं सर्वत्र विज्ञेयं संतानार्थे तु लक्षणम् क्षोणे कलियुगे तस्मिन्भविष्येतु कृते युगे | सप्तर्षिभिस्तु तैः सार्धंमाद्ये त्रेतायुगे पुनः गोत्राणां क्षत्रियाणां च भविष्येते प्रदर्तकौ । द्वापरांशे न तिष्ठन्ति क्षत्रिया ऋषिभिः सह काले कृतयुगे चैव क्षीणे त्रेतायुगे पुनः । वीजार्थं ते भविष्यन्ति ब्रह्मक्षत्रस्य वै पुनः एवमेव तु सर्वेषु तिष्ठन्तीहान्तरेषु वै । सप्तर्षयो नृपैः सार्धं संतानार्थं युगे युगे ६६३ ॥४३३ ॥४३४ ॥४३५ ॥४३६ ॥४३७ ॥४३८ ॥४३ ॥४४० ॥४४१ ॥४४२ ॥४४३ ॥४४४ के वंश में अतीत, वर्तमान एवं भविष्यत्कालीन ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वंश्यों और शूद्रों का भी वर्णन किया गया । प्रत्येक युगों में सहस्रों लाखों की संख्या में महान् पराक्रम शाली, बुद्धिमान् एवं जितेन्द्रिय राजा लोग उत्पन्न हो गये हैं, बहुत अधिक हो जाने तथा पुनरुक्ति के कारण उनकी संख्या प्रत्येक कुल के अनुसार मैंने नहीं बतलाई । इस वैवस्वत मन्वन्तर में निमिवंश की समाप्ति हो जाती है |४३३-४३५। इस वर्तमान युग में जिस प्रकार इन क्षत्रियों की उत्पत्ति होगी, उसे में बतला रहा हूँ, सुनिये । पौरववंशीय देवापि नामक राजा जो महान् योगाभ्यासी होगा, कलाप ग्राम में निवास करेगा, इसी प्रकार इक्ष्वाकुवंशीय सोमपुत्र सुवर्चा नामक एक राजा होगा । चौबीसवें युग में ये दो परम वीर राजा क्षत्रिय धर्म का प्रवर्तन करनेवाले होंगे |४३७-४३८० बीसवें (?) युग में चन्द्रवंश का आदिम राजा कोई न होगा | देवापि बिना किसी को प्रतिद्वन्द्विता एवं वैरभावना के ऐल वंश का प्रथम राजा होगा। चारों युगों के लिए ये दो राजा क्षत्रिय धर्म के प्रवर्तक होंगे। क्षत्रियगुण, धर्म, स्वभाववाली सन्तानों के लिए इन्हीं दोनों राजाओं को मूलरूप जानना चाहिये । तथा कथित कलियुग के व्यतीत हो जाने पर जब पुनः सतयुग का प्रारम्भ होगा, तब विख्यात सप्तर्षियों के साथ ये दोनों क्षत्रिय गोत्र के प्रवर्तकों के रूप में जन्म धारण करेंगे। इसी प्रकार त्रेतायुग के प्रारम्भिक काल में पुनः जन्म धारण करेंगे । द्वापरांश में न तो क्षत्रिय रहेंगे न ऋषिगण रहेंगे |४३६-४४२॥ सतयुग और त्रेतायुग के क्षीण होने पर वे ऋषि तथा राजर्षिगण ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों के वंशों के बीज रूप होकर उत्पन्न होंगे |४४३| सभी मन्वन्तरों [ में इसी प्रकार सप्तर्षिगण क्षत्रिय राजाओं के साथ स्थित रहते हैं। और प्रत्येकयुग में इसी प्रकार सन्तति उत्पन्न