पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९८३

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वायुपुराणम् ८६२ सप्तर्षयो मघायुक्ताः काले पारिक्षिते शतम् । अन्ध्रांशे सचतुर्विंशे भविष्यन्ति मते मम इमास्तदा तु प्रकृतिर्व्यापत्स्यन्ति प्रजा भृशम् । अनृतोपहताः सर्वा धर्मतः कामतोऽर्थतः श्रौतस्मातें प्रशिथिले धर्मे वर्णाश्रमे तदा । संकरं दुर्बलात्मानः प्रतिपत्स्यन्ति मोहिताः संसक्ताश्च भविष्यन्ति शूद्राः सार्धं द्विजातिभिः । ब्राह्मणाः शूद्रयण्टारः शूद्रा वै मन्त्रयोनयः उपस्थास्यन्ति तान्विप्रास्तदा वै वृत्तिलिप्सवः | लवं लवं भ्रश्यमानाः प्रजाः सर्वा क्रमेण तु क्षयमेव गमिष्यन्ति क्षीणशेषा युगक्षये | यस्मिन्कृष्णो दिवं यातस्तस्मिन्नेव तदा दिने प्रतिपन्नः कलियुगस्तस्य संख्यां निबोधत | सहस्राणां शतानोह त्रीणि मानुषसंख्यया ॥ षष्ट चैव सहस्राणि वर्षाणामुच्यते कलिः दिव्यं वर्षसहस्रं तु तत्संध्यांशं प्रकीर्तितम् । निःशेषे च तदा तस्मिन्कृतं वै प्रतिपत्स्यते ऐल इक्ष्वाकुवंशश्च सह भेदैः प्रकीर्तितौ । इक्ष्वाकोस्तु स्मृतः क्षत्रः सुमित्रान्तं विवस्वतः ऐलं क्षत्रं क्षेमकान्तं सोमवंशविदो विदुः । एते विवस्वतः पुत्राः कीर्तिताः कीर्तिवर्धनाः ॥४२३ ॥४२४ ॥४२५ ॥ ४२६ ॥४२७ ॥४२८ ॥४२६ ॥४३० ॥४३१ ॥४३२ होने का यही निदर्शन है । हमारे मत से राजा परीक्षित के राजत्वकाल में सप्तपिंगण एक सौ वर्ष के लिए मघा नक्षत्र में स्थित होंगे, अन्ध्रवंशीय राजा को समाप्ति के बाद वे चौवीसवें नक्षत्र ( शतभिषा) में स्थित रहेगे ।४२०-४२३। उस समय पृथ्वी पर सारो प्रजाएँ अनेक प्रकार की विपत्तियों में पिस जायंगी। मिथ्याचार परायण होकर घर्मार्थ काम विहीन हो जायँगी । शास्त्रीय श्रौत स्मार्तं कर्मों का ह्रास हो जायगा, वर्णाश्रम धर्म को मर्यादा लुप्त हो जायगी, दुर्बलात्मा मानव अज्ञान में पड़कर संकरवर्ण हो जायेंगे | शूद्र लोग द्विजातियों के साथ हिलमिल जायेंगे, ब्राह्मण शूद्रों के घर जाकर यज्ञ कराने लगेंगे, शूद्र लोग मन्त्र कर्त्ता बन जायंगे | जीविका के लोभ से ब्राह्मण उन शूद्रों की उपासना करने लगेगे, सारी प्रजा घोरे- ह्रास को प्राप्त होने लगेगी और इसी प्रकार युग की समाप्ति हो जाने पर वह भी क्षीण हो जायगी। जिस दिन भगवान् स्वर्गवासी होते है, उसी दिन कलियुग की प्रवृत्ति होती है, उसको अवधि की संख्या सुनिये | मानव मान से तीन लाख साठ सहस्र वर्षों का कलियुग कहा जाता है |४२४-४२६। उसका सध्यांश देव मान से एक सहस्र वर्ष कहा जाता है । कलियुग की समाप्ति हो जाने पर कृतयुग का प्रारम्भ होता है इला और इक्ष्वाकु के वशों को, उनके पारस्परिक भेदों के साथ, हम बतला चुके, इक्ष्वाकु के वंश में जिन क्षत्रियों का आविर्भाव हुआ, वे सब राजा सुमित्र के अन्त पर्यन्त रहे, सुमित्र के बाद सूर्य पुत्र इक्ष्वाकु के वंश का अवसान हो जाता है । चन्द्रवंश के इतिहास को जानने वाले लोग इला के वंश को राजा क्षेमक के अन्त तक जानते हैं । सूर्य के कीर्तिशाली इन पुत्रों का वर्णन किया जा चुका १४३०-४३२। इसके अतिरिक्त उन सब