पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९८२

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नवनवतितमोऽध्यायः यदा चन्द्रश्च सूर्यश्च तथा तिष्यबृहस्पती | एकरात्रे भविष्यन्ति तदा कृतयुगं भवेत् एष वंशक्रमः कृत्स्नं कोर्तितो वो यथाक्रमम् । अतोता वर्तमानाश्च तथैवानागताश्च ये महादेवाभिषेकात्तु जन्म यावत्परीक्षितः । एतद्वर्पसहस्रं तु ज्ञेयं पश्चाशदुत्तरम् प्रमाणं वं तथा चोक्तं महापद्मान्तरं च यत् । अन्तरं तच्छतान्यष्टौ पत्रिंशच्च समाः स्मृताः एत्कालान्तरं भाव्या अन्ध्रान्ता ये प्रकीर्तिताः । भविष्यैस्तत्र संख्याताः पुराणज्ञैः श्रुर्तापभिः

  • सप्तर्षयस्तदा प्रागः प्रतीपे राज्ञि वै शतम् । सप्तविशेः शतैर्भाव्या अन्ध्राणां ते त्वया पुनः

सप्तविंशतिपर्यन्ते कृत्स्ने नक्षत्रमण्डले | सप्तर्षयस्तु तिष्ठन्ति पर्यायेण शतं शतम् ॥ सप्तर्षीणां युगं ह्येतद्दिव्यया संख्यया स्मृतम् ॥४१६ सा सा दिव्या स्मृता षटिव्याश्चैव सप्तभिः | तेभ्यः प्रवर्तते फालो दिव्यः सप्तर्षिभिस्तु तैः ॥ सप्तर्षीणां तु ये पूर्वा दृश्यन्ते उत्तरादिशि । ततो मध्येन च क्षेत्रं दृश्यते यत्समं दिवि तेन सप्तर्षयो युक्ता ज्ञेया व्योम्नि शतं समाः । नक्षत्राणामृषीणां च योगस्यैत निदर्शनम् ॥४२१ ॥४२२ ६६१ ॥४१३ ॥४१४ ॥४१५ ||४१६ ॥४१७ ॥४१८ नष्ट हो जायँगो और इस प्रकार संध्या समेत कलियुग के व्यतीत हो जाने पर कृतयुग की प्रवृत्ति होगी। जिस समय चन्द्रमा, सूर्य, पुष्प और वृहस्पति - ये सब एक राशि पर होगे, उस समय कृतयुग की प्रवृत्ति होगी ।४१२-४१३॥ अतीत, वर्तमान एवं भविष्यत्कालीन राजाओं के वंशों को क्रमानुसार मैं आप लोगों को बतला चुका राजा परीक्षित के जन्म से लेकर महापद्म के अभिषेक तक का समय एक सहस्र पचास वर्ष जानना चाहिये । पुराणों के जाननेवाले वैदिकज्ञानसम्पन्न ऋषियों ने महापद्म के शासनकाल से लेकर अन्धो के अन्त तक का काल माठ सो उन्तीस वर्ष का वतलाया है। सप्तर्पिगण एक-एक नक्षत्र में एक-एक सौ वर्ष क्रमानुसार अवस्थित रहते है । इस प्रकार समस्त नक्षत्र मण्डल में वे सत्ताईस सौ वर्ष स्थित रहते हैं | पर्यायक्रम से एक-एक नक्षत्र में एक एक सौ वर्ष की स्थिति का काल उनका उनका एक-एक युग कहलाता है । यह युग दिव्य संख्या से निर्णीत होता है |४१४-४१६ | दिव्य साठ वर्षों तथा सात दिनों का सप्त- थियों का एक सौ वर्ष होता है। सप्तर्पिगणों के इस प्रकार के गतिश्रम में दिव्यकाल का प्रवर्तन होता है | सप्तर्पिगण प्रथमतः नक्षत्र मण्डल के पूर्व दिशा की ओर पश्चात् उत्तर दिशा की ओर दिखाई पड़ते हैं । तदनन्तर आकाश के मध्यभाग में जो नक्षत्र दिखाई पड़ता है, उसके समानान्तर दिसाई पड़ता है । उसके साथ आलत में सप्तपिंगणों को सो वर्षों तक स्थित जानना चाहिये ? नक्षत्रों एवं ऋषियों के साथ योग

  • इत: मभृति पर्यायेण शतं शतमित्यन्तग्रन्थो ग. पुस्तकें न विद्यते ।

फा०-१२१