पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९८१

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६६० वायुपुराणम् अरण्यान्यभिपत्स्यत्ति आर्या म्लेच्छजनैः सह । मृगमनविहङ्गैश्च श्वापदैस्तक्षुभिस्तथा ॥ x मधुशाकफलैर्मूलैवर्तयिष्यन्ति मानवाः ॥४०४ ।।४०५ ॥४०७ ॥४०८ चीरं पर्णं च विविधं वल्कलान्यजिनानि च । स्वयं कृत्वा विवत्स्यन्ति यथासुनिजनास्तथा बीजान्नानि तथा निम्नेष्वीहन्तः काष्ठशङ्कुभिः | अजैडकं खरोष्ट्रं च पालयिष्यन्ति यत्नतः ॥४०६ नदीवत्स्यन्ति तोयार्थे कूलमाश्रित्य मानवाः । पार्थिवान्व्यवहारेण विनाधन्तः परस्परम् बहुपत्याः प्रजाहीनाः शौचाचारविवर्जिताः । एवं भविष्यन्ति नरास्तदाऽधर्मे व्यवस्थिताः होनाद्धीनांस्तथा धर्मान्प्रजा समनुवर्तते । आयुस्तदा त्रयोविंशं न कश्चिदतिवर्तते दुर्बला विषयग्लाना जरया संपरिप्लुताः । पत्रसूलफलाहाराश्चीरकृष्णाजिनाम्वराः वृत्त्यर्थमभिलिप्सन्तश्चरिष्यन्ति वसुंधराम् । एतत्कालमनुप्राप्ताः प्रजाः कलियुगान्तके क्षीणे कलियुगे तस्मिन्दिव्ये वर्षसहस्रके | निःशेषास्तु भविष्यन्ति सार्धं कलियुगेन तु ॥ ससंध्यांशे तु निःशेषे कृतं वै प्रतिपत्स्यते तु ॥४०६ ॥४१० ॥४११ ॥४१२ एवं भीषण अरण्यों में मृगो, मत्स्यों पक्षिया एवं अन्यान्य हिस्र जन्तुओ के साथ साथ मधु, शाक, मूल, फलादि खा-खाकर जीवन यापन करेंगे । ४०२-४०४॥ वे मुनियों को भांति वृक्ष के वल्कलों, मृगचर्मों एवं पत्तों के चीर अपने हाथों से बना बना कर धारण करेंगे। निम्न प्रान्तों में अन्न के बीजों का अन्वेषण करते हुए वे लोग काष्ठ और शंकुओं द्वारा जोविका अर्जित करेंगे । चकरो, भेड़, गधे और ऊँटों का यत्नपूर्वक पालन करेंगे ४०५-४०६। जल के लिये नदियों के किनारे निवास बनाएंगे। राजाओं में परस्पर वैमनस्य का बीज बोएंगे। किन्ही किन्हीं को सन्तानों की अधिकता हो जायगी, किन्ही किन्ही को सम्ताने एकदम न रहेगी, पवित्रता एवं आचार का स्थान एकदम से उनमें विलुप्त हो जायगा । उस समय अधर्म में पड़ी हुई मानव जाति इस प्रकार की हो जायेगी | लोग निकृष्ट से भी निकृष्ट तर अधर्ममय कार्यों में अनुरक्त हो जायेगे । उस समय तेईस वर्प से बढ़कर किसी की आयु न होगी ।४०७-४०६। दुर्बलाङ्ग, विषयलोलुप, वृद्धता से दबाए हुए पत्ते, मूल, फूल, फल का आहार करनेवाले, चीर एवं कृष्ण मृग चर्म के पहिनने वाले वे लोग जीविका के लिये सारी पृथ्वी का भ्रमण करेंगे । कलियुग के अन्त में प्रजाएँ इस प्रकार की विविध आपत्तियों में ग्रस्त हो जयँगी १४१०-४११। एक सहस्र वर्षात्मक उस कलियुग के क्षीण हो जाने पर उस समय की सारी प्रजाएँ भी उसी के साथ सर्वांशतः - x इतः प्रभृति सार्धइलोको नास्ति घ. पुस्तके |