पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९८०

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नवनवतितमोsध्याय: ॥३६४ ॥३६५ ॥३६६ ॥३९७ ॥३६८ तेषां व्यतीते पर्याये बहुस्त्रीके युगे तदा | लवाल्लवं भ्रश्यमाना आयूरूपबलश्रुतैः तथा गतास्तु वै काष्ठां प्रजासु जगतीश्वराः । राजानः संप्रणश्यन्ति कालेनोपहतास्तदा कल्किनोपहताः सर्वे म्लेच्छा यास्यन्ति सर्वशः | अंधासिकाश्च तेऽत्यर्थ पाषण्डाश्चैव सर्वशः प्रनष्टे नृपशब्दे च संध्याम्लिष्टे कलौ युगे | किंचिच्छिष्टाः प्रजात्ता वै धर्मे नष्टेऽपरिग्रहाः असाधना हताशाश्च व्याधिशोकेन पीडिताः । अनावृष्टिहताश्चैव परस्परवधेन च अनाथा हि परित्रस्ता वार्तामुत्सृज्य दुःखिताः । त्यवत्वा पुराणि ग्रामांश्च भविष्यति वनौकसः ॥ ३६६ एवं नृपेषु नष्टेषु प्रजास्त्यक्त्वा गृहाणि तु | नष्टे स्नेहे दुरापन्ना भ्रष्टस्नेहाः सुहृज्जनाः वर्णाश्रमपरिभ्रष्टाः संकरं घोरमास्थिता । सरित्पर्वत सेविन्यो भविष्यन्ति प्रजास्तदा सरितः सागरानूपान्सेवन्ते पर्वतानि च । अङ्गान्कलिङ्गान्वङ्गांश्च काश्मीरात्काशिकोशलान् ॥४०२ ऋषिकान्तगिरिद्रोणी: संश्रयिष्यन्ति मानवाः । कृत्स्नं हिमवतः पृष्ठं कूलं च लवणाम्भसः ॥४०३ ॥४०० ॥४०१ भरे हुए, मिथ्याचारण वे राजा लोग इसी प्रकार सर्वदा पापकर्मों में लगे रहेंगे । कालक्रम से उनके विनाश हो जाने पर देश में स्त्रियों अधिकता हो जायगी, लोग आयु; सौन्दर्य, वल एवं ● शास्त्रज्ञान में धीरे धीरे न्यून होते जायेंगे । इस प्रकार क्षीण होते होते प्रजा जब अन्तिम ह्रास की सीमा पर पहुँच जायँगी, तब वे दुराचारी राजा लोग कालक्रम से विनाश को प्राप्त हो जायेगे |३९३-३९५ | उस समय कल्कि द्वारा ताडित होकर वे अधार्मिक म्लेच्छ सब ओर से विनष्ट हो जायेंगे पाषण्डों का उच्छेद हो जायेगा । इस प्रकार सम्ध्यामात्र जब कलियुग शेष रह जायगा तो नृप शब्द ही नष्ट हो जायेगा, अर्थात् राजाओं का सर्वदा अभाव हो जायेगा | कुछ प्रजाएं शेष रह जायेंगी । धर्म के नष्ट हो जाने पर साधनविहीन आपत्तियों को मारी, व्याधि एवं शोक के कारण चिन्ताकुलित, अनावृष्टि तथा परस्पर मारकाट से आतंकित और पीड़ित प्रजाएँ अनाथ हो जायंगी । सव ओर से त्रस्त होकर वे जीविका विहीन हो जायँगी । अत्यन्त दुःखित होकर पुर, ग्राम एवं नगरों को छोड़कर वन में निवास बनाएँगी । ३९६-३६६। इस प्रकार राजाओं के विनाश होने पर प्रजाएँ अपना घर छोड़ कर भाग जायँगी । स्नेह भावना नष्ट हो जायगी, आपत्तियों से दलित होकर स्नेहियो तथा सुहृदों को छोड़ देगी । वर्णाश्रम धर्म का विनास हो जायगा, वे धोर संकर वर्ण हो जायँगी । पर्वतों की गुफाओं और नदियों के एकान्त तटों पर वे निवास करेंगी |४००-४०१ । घर द्वार छोड़ कर सारी प्रजाएँ समुद्रतट, नदियों, पर्वतों एवं जलीय प्रान्तो में निवासार्थ भाग जायँगी | सारी मानव जाति अपने अपने प्रियदेशो को छोड़कर भङ्ग, कलिङ्ग, बङ्ग, काशमीर, काशी, कोशल, ऋषिक, गिरिद्रोणी प्रभृति प्रान्तों में आश्रम प्राप्त करेंगी | आर्यलोग म्लेच्छों के साथ सारी हिमवान् की पृष्ठभूमि, क्षार समुद्र के तटवर्ती प्रान्तों