पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९७९

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६५८ वायुपुराणम् मथुरां च पुरीं रम्यां नागा भोक्ष्यन्ति सप्त वै । अनुगङ्गं प्रयागं च साकेतु मगधांस्तथा ॥ एताञ्जनपदान्सर्वान्भोध्यन्ते गुप्तवंशजाः ॥३८३ ॥३८४ निषधान्यदुकांश्चैव शैशीतान्कालतोषकान् । एताञ्जनपदान्सर्वान्भोक्ष्यन्ति मणिधान्यजाः कोशलांश्चान्ध्र पौड्रांश्च ताम्रलिप्तान्ससागरान् | चम्पां चैव पुरीं रम्यां भोक्ष्यन्ति देवरक्षिताम् ॥ ३८५ कलिङ्गा महिषाश्चैव सहेन्द्रनिलयाश्च ये । एताञ्जपदान्सर्वान्पालयिष्यति वै गुहः स्त्री राष्ट्र भक्ष्यकांश्चैव भोक्ष्यते कनकाहृयः । तुल्यकालं भविष्यन्ति सर्वे ज्ञेते महीक्षितः अल्पप्रसादा ह्यनृता महाक्कोधा ह्यधार्मिकाः । भविष्यन्तीह यवना धर्मतः कामतोऽर्थतः नैव सूर्धाभिषिक्तास्ते भविष्यन्ति नराधिपाः | युगदोषाद्दुराचारा भविष्यन्ति नृपास्तु ते स्त्रीणां बालवधेनैव हत्वा चैव परस्परम् | भोक्ष्यन्ति कलिशेषे तु वसुधा पार्थिवास्तथा उदितोदितवंशास्ते उदित्तास्तमितास्तथा । भविष्यन्तीह पर्याये कालेन पृथिवीक्षितः विहीनास्तु भविष्यन्ति धर्मतः कामतोऽर्थतः । तैर्विमिश्रा जनपदा म्लेच्छाचाराश्च सर्वशः विपर्ययेण वर्तन्ते नाशयिष्यन्ति वै प्रजाः । लुब्धानृतरताश्चैव भवितारस्तदा नृपाः ॥३८६ ॥३८७ ॥३८८ ॥३८९ • ॥३९० ॥३६१ ॥३६२ ॥३६३ के तटवर्ती प्रान्त प्रयाग, साकेत और मगव आदि जनपदों में गुप्तवंशीय राजाओं का अधिकार होगा ।३८१-३८३। निवष, यदुक, शैशीत, कालतोपद आदि जनपदों में मणिधान्य वंशज राजाओं का शासन होगा | कोशल, आन्ध्र, पौण्डू, समुद्रसमेत ताम्रलिप्त देवताओं द्वारा सुरक्षित मनोहारिणी चम्पानगरी- कलिङ्ग, महिष, महेन्द्रनिलय प्रभृति जनपदों में गुहवंशोत्पन्न राजा का राज्य होगा ।३८४-३८६ कनक नामक राजा सौराष्ट्र (स्त्री राष्ट्र ) भक्ष्यक आदि जनपदों का शासन होगा | ये सव राजा गण भी उसी एक समय में इन सब स्थानों के शासक होंगे । इनके उपरान्त थोड़े प्रसन्न होनेवाले, मिप्यावादी, महान् क्रोधी, अधार्मिक प्रवृत्तियों वाले धर्मार्थकाम-सभी ओर से विहीन यवनों का यहाँ पर राज्य होगा | यवन राजा गण कभी मूर्धाभिषिक्त नहीं होंगे, युगदोष कारण वे परम दुराचारी होंगे। कलि के अन्तिम भाग में स्त्री और बालकों का वध करनेवाले वे राजा लोग परस्पर मारकाट मचाकर पृथ्वी पर शासन करेगे |३८७-३९०। उन दुराचारी राजाओं के वंश कही पर तो अत्यन्त बढ़ जायेंगे और कहीं पर बहुत बढ़ कर विनाश को प्राप्त हो जायेंगे | कालक्रम से पृथ्वी पर ऐसे दुराचारी नृशंस राजाओं का शासन होगा । वे धर्मार्थकाम त्रिवर्ग से सर्वदा विहीन रहेगे । प्रत्येक जनपदो में वे म्लेच्छाचार-परायण राजा लोग जा जाकर मिल जायेंगे |३९१-३६२। परिणाम स्वरूप सब ओर से जनपदों में भी उनके अत्याचारों की धूम मच जायगी । वहाँ जाकर वे सव उलटफेर मचायेंगे, प्रजावर्ग का विनाश करेंगे । लालच में