पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९६१

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६४० वायुपुराणम् इन्द्रसेना यतो गर्भं वध्यश्वं प्रत्यपद्यत । वध्यश्वान्मिथुनं जज्ञे मेनका इति नः श्रुतिः दिवोदासश्च राजपिरहल्या च यशस्विनी | शारद्वतस्तु दायादमहल्या समसूयत शतानन्दसृषिश्रेष्ठं तस्यापि सुमहायशाः । पुत्रः सत्यधृतिर्नाम धनुर्वेदस्य पारगः अथ सत्यधृतेः शुक्रं दृष्ट्वाप्सरसमग्रतः । प्रचस्कन्दे शरस्तम्वे मिथुनं समपद्यत कृपया तच्च जग्राह शंतनुभृंगयां गतः । कृपः स्मृतः स वै तस्माद्‌गौतमी च कृपी तथा एते शारद्वताः प्रोक्ता ऋतथ्या गौतमान्वयाः । अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि दिवोदासस्य संततिम् दिवोदासस्य दायादो ब्रह्मिष्ठो मित्रयुर्नृपः | मैत्रेयस्तु ततो जज्ञे स्मृता एतेऽपि संश्रिताः एतेऽपि संश्रिताः पक्षं क्षात्त्रोपेतास्तु भार्गवाः । राजाऽपि च्यवनो विद्वांस्ततोऽप्रतिरथोऽभवत् अथ वै च्यवनाद्धोमान्सुदासः समपद्यत । सौदासः सहदेवश्च सोमफस्तस्य चाऽऽत्मजः अजमीढः पुनर्जातः क्षीणे वंशे स सोमः | सोमकस्य सुतो जन्तुर्हते तस्मिञ्शतं विभो पुत्राणामजसोढस्य सोमकत्वे महात्मनः । तेषां यवोयान्पृषतो द्रुपदस्य पिताऽभवत् ||२०० ।२०१ ।।२०२ ॥२०३ ।२०४ ।२०५ ।२०६ ||२०७ ॥२०८ ॥२०६ ॥२१० को जन्म दिया। हमने ऐसा सुना है कि मेनका ने इसी राजा वध्यश्व के समागम एक जुड़वी सन्ताने उत्पन्न की थीं। जिसमें एक राजर्षि दिवोदास थे, दूसरी परम यशस्विनी अहल्या थीं। महल्या ने शारद्वत के संयोग से ऋषिवर शतानन्द को पुत्ररूप में प्राप्त किया । शतानन्द के महान् यशस्वी सत्यधृति नामक पुत्र हुमा, जो धनुर्वेद में परम पारङ्गत था |२००-२०२। एक बार सम्मुख आती हुई किसी अप्सरा को देखकर सत्यघृति का शुक्र सरपतों के गुल्म में गिर पड़ा, जिससे एक जुड़वाँ सन्तान उत्पन्न हुई । संयोगवश राजा शन्तनु मृगया खेलते हुए वहाँ पहुँचे और उन्होंने कृपा करके उन बच्चों को उठा लिया और अपने घर लाकर उनका पालन पोषण किया। इसी कारण उन दोनों के नाम कृपा और कृपी रखे गये, उसो कृपो का दूसरा नाम गौतमी भी था |२०३-२०४१ शारद्वत कहे जाने वाले गौतमवंशीय ऋतथ्यों का यह वंशवर्णन कर चुका | अब इसके उपरान्त दिवोदास की सन्ततियों का वर्णन कर रहा हूँ | दिवोदास का उत्तराधिकारी ब्रह्म- परायण राजा मित्रयु था । उससे मैत्रेय की उत्पत्ति हुई - मैत्रेय के वंश में उत्पन्न होनेवाले भी क्षत्रियगुण धर्म समन्वित द्विजाति कहलाये - और उन सबों का गोत्र भार्गव रहा। तदन्तर उसी वंश में विद्वान् राजा च्यवन का जन्म हुआ, जिसके रथ की समानता कोई अन्य राजा नहीं कर सकता था । २०५ - २०७१ व्यवन से परम बुद्धिमान् राजा सुदासु की उत्पत्ति हुई, सुदासु का पुत्र सहदेव हुआ, सहदेव का पुत्र सोमक था । वंश के विनाश समुपस्थित होने पर राजा अजमीढ़ ही सोमक के रूप में उत्पन्न हुये थे । सोमक का पुत्र जन्तु था, उसके मारे जाने पर उस महान् पराक्रमशाली एवं धर्मात्मा सोमक रूपधारी राजा अजमीढ के अन्य सौ पुत्र उत्पन्न हुए, जिनमें सबसे छोटा पृषत् था, यह पृषत् राजा द्रुपद का पिता था । अर्थात