पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९६२

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नवनवतितमोऽध्यायः धृष्टद्युम्नः सुतस्तस्य धृष्टकेतुश्च सत्सुतः | महिषा चाजमोढस्य धूमिनी पुत्रर्गाधनी पुनर्भवे तपस्तेपे शतं वर्षाणि दुश्वरम् | हुताग्न्यनिद्रा ह्यभवत्पवित्रमितभोजना अहोरात्रं कुशेष्वेव सुब्वाप सुमहाव्रता | तस्यां वै धूम्रवर्णायामजसीढश्च वीर्यवान् ऋक्षं सा जनयामास धूम्रवर्णं सिताग्रजम् । ऋक्षात्संवरणो जज्ञे कुरुः संवरणादभूत् यः प्रयागं पदाऽऽक्रम्य कुरुक्षेत्रं चकार ह | कृष्ट्वैनं सुमहातेजा वर्षाणि सुबहून्यथ कृष्यमाणे तदा शकस्तत्रास्य वरदो बभौ | पुण्यं च रमणीयं च पुण्यकृद्भिनिषेवितम् तस्यान्ववायजाः ख्याताः कुरवो नृपसत्तमाः । कुरोस्तु दयिताः पुत्राः सुधन्वा जह, नुरेव च परीक्षितो महाराजः पुत्रकचारिमर्दनः । सुधन्वनस्तु दायादः सुहोत्रो मतिमान्स्मृतः च्यवनस्तस्य पुत्रस्तु राजा धर्मार्थकोविदः । च्यवनस्य कृतः पुत्र इष्ट्वा यज्ञैर्महातपाः विश्रुतं जनयामास पुत्रमिन्द्रसवं नृपः । विद्योपरिचरं वीरं वसुंं नामान्तरिक्षगम् विद्योपरिचराज्जज्ञे गिरिका सप्त सूनवः । महारथो मगधराड्विश्रुतो यो बृहद्रथः ६४१ ॥२११ ॥२१२ ॥२१३ ॥ २१४ ॥२१५ ॥२१६ ॥२१७ ॥२१८ ॥२१६ ॥२२० ॥२२१ पृषत् का पुत्र द्रुपद था । २०८२१० द्रुपद का पुत्र धृष्टद्युम्न हुआ, धृष्टद्युम्न का पुत्र धृष्टकेतु था। राजा अजमीढ़ की तीसरी रानी घूमिनी को पहले कोई सन्तान नहीं थी, सन्तान की उत्कट आकांक्षा से उसने इस पुनर्जन्म में सौ वर्षों तक परम कठोर तपस्या की, हवन किया, रात भर जागरण किया, पवित्र कर्मों में निरत रह कर स्वल्पाहार किया, रात दिन कुशासन पर बैठती रही - उसी पर सोती रही- इस प्रकार उसने महान् तपस्या की । तपस्या करते करते वह काली पड़ गई, उसमें परम वीर्यशालो राजा अजमीढ़ ने गर्भाधान किया, जिससे ऋक्ष नामक पुत्र का जन्म हुआ, यह ऋक्ष देखने में धूएँ के समान कृष्णवर्ण का था, इसका एक छोटा भाई सित भी था । ऋक्ष सम्वरण की उत्पत्ति हुई, सम्वरण से कुरु उत्पन्न हुआ ।२११-२१४॥ महान् तेजस्वी इस कुरु ने अपने चरणों से प्रयाग को आक्रान्त कर नवीन तीर्थ कुरुक्षेत्र का निर्माण किया था । बहुत वर्षों तक उसने कुरुक्षेत्र को जोता था | कुरुक्षेत्र के जोतते समय इन्द्र ने वरदान दिया था कि तुम्हारा यह क्षेत्र परम रमणीय, पुण्यप्रद एवं धर्मात्माओं के निवास करने योग्य है | उस राजा कुरु के वंश में उत्पन्न होनेवाले कुरुगणों के नाम से ख्यात हुए, वे सब अपने समय के यशस्वी राजा थे । कुरु के परम प्रिय पुत्र सुधन्वा, जह्न, परीक्षित, पुत्रक और अरिमर्दन थे। इनमें सुधन्वा के उत्तराधिकारी परम बुद्धिमान् सुहोत्र थे |२१५ - २१८ | सुहोत्र का पुत्र धर्मार्थवेत्ता राजा च्यवन था, च्यवन का पुत्र कृत हुआ, यह कृत महान् तपस्वी राजा था, इसने विविध यज्ञों का अनुष्ठान करके इन्द्र के मित्र, परम विख्यात, आकाशचारी वसुनाम से विख्यात विद्योपरिचर नामक पुत्र को उत्पन्न किया । उस विद्योपरिचर से गिरिका ने सात पुत्र उत्पन्न किये। जिनमें एक महारथी मगधसम्राट् राजा वृहद्रथ था ।२१६-२२१॥