नवनवतितमोऽध्यायः शिष्यो हिरण्यनाभेस्तु कौथुमस्य महात्मनः । चतुर्विंशतिधा तेन प्रोक्तास्ताः सामसंहिताः स्मृतास्ते प्राच्यनामानः कार्ता साम्नां तु सामगाः । कार्तिरुग्रायुधः सोऽथ वीरः पौरवनन्दनः बभूव येन विक्रम्य पृषतस्य पितामहः । नीलो नाम महाबाहुः पञ्चालाधिपतिर्हतः उग्रायुधस्य दायादः क्षेमो नाम महायशाः । क्षेमात्सुवीरः संजज्ञे सुवीरस्य नृपंजयः ॥ नृपंजयाद्वीररथ इत्येते पौरवाः स्मृताः अजमीढस्य नोलिन्यां नीलः समभवन्तृपः । नीलस्य तपसोग्रेण सुशान्तिरभ्यजायत पुरुजानुः सुशान्तेस्तु रिक्षस्तु पुरुजानुजः । *ततस्तु रिक्षदायादो भेदाच्च तनयास्त्विमे मुद्गलः शृञ्जयश्चैव राजा बृहदिषुस्तथा । यवीयांश्चापि विक्रान्तः काम्पिल्यश्चैव पञ्चमः पश्चानां रक्षणार्थाय पितैतानभ्यभाषत । पश्चानां विद्धि पञ्चैतान्स्फीता जनपदा युताः अलं संरक्षणे तेषां( + पञ्चाला इति विश्रुताः । मुद्गलस्यापि मौद्गल्याः क्षात्त्रोपेतद्विजातयः॥१६८ एते ह्यङ्गिरसः पक्षे संश्रिताः कण्ठमुद्गलाः । मुद्गलस्य सुतो ज्येष्ठो) ब्रह्मिष्ठः सुमहायशाः ॥१९६
॥१६० ॥१६१ ॥१६२ वह राजा कृत कौथुमीशाखाध्यायी महात्मा हिरण्यनाभि का शिष्य था, यह चौवीस प्रकार की सामसंहिताओं का प्रवक्ता था ।१८७-१९०। उनके द्वारा निर्मित संहिताओं की ख्याति सामगान करनेवाले प्राच्य नाम से करते हैं । उसी राजा कृत का पुत्र उग्रायुध था, यह पुरुवंशियों को आनन्दित करनेवाला राजा उग्रायुध परम वीर था । इसी राजा उग्रायुध ने अपने विक्रम की ख्याति करते हुए पञ्चाल देशाधिपति राजा पृषत् के पितामह महाबाहु नील का संहार किया था । उग्रायुध का उत्तराधिकारी महान् यशस्वी राजा क्षेम हुआ । उस क्षेम से सुवीर नामक पुत्र का जन्म हुआ, सुवीर का पुत्र राजा नृपञ्जय हुआ । नृपञ्जय से वीररथ की उत्पत्ति हुई— यही सब पुरुवंशी राजा कहे गये हैं |१६१-१९३ | अजमोढ़ को नोलिनी नामक पत्नी में राजा नोल को उत्पत्ति हुई, नील की विकट तपस्या के फलस्वरूप सुशान्ति नामक पुत्र का जन्म हुआ, सुशान्ति का पुत्र पुरुजानु हुआ, पुरुजानु का पुत्र रिक्ष था। उस रिक्ष के अनेक उत्तराधिकारी पुत्र हुए, उनके नाम थे, मुद्गल, शृञ्जय, बृहदिषु, यवीयान् और काम्पिल्य ११६४-१९६। पाँचों पुत्रों की सुरक्षा के लिये पिता ने इनसे बतलाया था कि तुम पाँचों के लिये ये पाँच सुन्दर एवं उपजाऊ जनपद है, इन्हें जान लो, उन पचों पुत्रों के भरण पोषण के लिये वे पाँच जनपद पर्याप्त थे | उन पांचों जनपदों को कालान्तर में पञ्चाल नाम से ख्याति हुई । मुद्गल के वंशज क्षत्रिय गुणधर्म समन्वित द्विज हुए। ये सब कण्ठ और मुद्गल के वंशज आंगिरस गोत्र में सम्मिलित हो गये । मुद्गल का ज्येष्ठ पुत्र महान् यशस्वी ब्रह्मिष्ठ था |१६७ - १६६। उसके संयोग से इन्द्रसेना ने वध्यश्व नामक पुत्र + धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थो ङ. पुस्तके नास्ति । नायं श्लोको घ. पुस्तके ! ॥१६३ ॥१६४ ॥१६५ ॥१६६ ॥१६७