पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९५८

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नवनवतितमोऽध्यायः ॥ १७४ मेधातिथिः सुतस्तस्य तस्मात्कण्ठायना द्विजाः | अजमीढस्य धूमिन्यां जज्ञे बृहद्वसुर्नृपः बृहद्वसोबृ हद्विष्णुः पुत्रस्तस्य महाबलः । बृहत्कर्मा सुतस्तस्य पुत्रस्तस्य वृहद्रथः विश्वजित्तनयस्तस्य सेनजित्तस्य चाऽऽत्मजः । अथ सेन जितः पुत्राश्चत्वारो लोकविश्रुताः रुचिराश्वश्च काव्यश्च रामो दृढधनुस्तथा । वत्सश्चावन्तको राजा यस्य ते परिवत्सराः रुचिराश्वस्य दायादः पृथुषेणो महायशाः । पृथुषेणस्य पारस्तु पारान्नीपोऽथ जज्ञिवान् यस्य चैकशतं चाऽऽसीत्पुत्राणामिति नः श्रुतम् । नीपा इति सामाख्याता राजानः सर्व एव ते ॥१७५ तेषां वंशकरः श्रीमान्राजाऽऽसीत्कोतिवर्धनः । काम्पिल्ये समरो नाम स चेण्टसमरोऽभवत् ॥१७६ समरस्य परः पारः सत्वदश्व इति त्रयः | पुत्राः सर्वगुणोपेताः पारपुत्रो वृषुर्वभौ ॥१७७ वृषोस्तु सुकृतिर्नाम सुकृतेनेह कर्मणा | जज्ञे सर्वगुणोपेतो विभ्रजस्तस्य चाऽऽत्मजः विभ्राजस्य तु दायादस्त्वणुहो नाम पार्थिवः । बभूव शुकजामाता ऋचीभर्ता महायशाः अणुहस्य तु दायादो ब्रह्मदत्तो महातपाः | योगसूनुः सुतस्तस्य विष्वक्सेनोऽभवन्नृपः ॥१७८ ६३७ ॥१७० ॥१७१ ॥१७२ ॥१७३ ॥१७६ ॥१८० मेधातिथि था, उसके वंशज कण्ठायन नामक द्विज कहे जाते हैं। अजमीढ़ की दूसरी पत्नी धूमिनी में राजा वृहद्वसु का जन्म हुआ, वृहद्वसु का पुत्र वृहद्विष्णु हुआ, उसका पुत्र महावल था, महाबल का पुत्र बृहत्कर्मा था, वृहत्कर्मा का पुत्र राजा वृहद्रथ हुआ । उसका पुत्र विश्वजित था, विश्वजित् का पुत्र सेनजित हुआ । सेनजित् के चार लोकविख्यात पुत्र हुए | उनके नाम थे, रुधिराव काव्य, दृढ़ धनुर्धारी राम और अवन्तिदेशाधिपति वत्स | इसी राजा वत्स के नाम से सुप्रसिद्ध परिवत्सरो का प्रचलन हुआ |१७०-१७३१ रुचिराश्व का पुत्र महान् यशस्वी पृथुषेण था, पृथुषेण का पुत्र पार था, पार से नीप का जन्म हुआ। हमने सुना है कि उस राजा नीप के एक सौ पुत्र थे। सब के सब राजा थे, उन सब की नीपगण नाम से ख्याति थी । उन समस्त नीपगुणों में वंशोद्धारक परम यशस्वी समर नामक एक पुत्र था, उसने काम्पिल्य के युद्ध में विजय प्राप्त की थी। उस समर के पर, वार और सत्वदश्व -- ये तीन पुत्र हुए, तीनों सर्वगुणसम्पन्न थे | इनमें पार का पुत्र वृषु हुआ, वृपु का पुत्र सुकृति नामक हुआ, उसके शुभ कर्मों से सर्वगुण सम्पन्न विभाज नामक एक पुत्र हुआ |१७४-१७८१ विम्राज का उत्तराधिकारी राजा अणुह हुआ । वह परम यशस्वी राजा अणुह शुक का जामाता एवं ऋची का पति था । अणुह का उत्तराधिकारी महान् तपस्वी ब्रह्मदत्त हुआ | उस ब्रह्मदत्त का पुत्र योगसूनु और योगसूनु का पुत्र विष्वक्सेन हुआ । विनाज के वंश में होनेवाले ये नृपतिगण अपने सत्कर्मो

फा० – ११८