पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९५७

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वायुपुराणंम् महाभूतोपमाश्चाऽऽसंश्चत्वारो भुवमन्युजाः । वृहत्क्षत्रो महावीर्यो नरो गानश्च वीर्यवान् नरस्य सांकृति: पुत्रस्तस्य पुत्रौ महौजसौ । गुरुवीर्यस्त्रिदेवश्च सांकृत्वाववरौ स्मृतौ दायादाश्चापि गाग्रस्य शिनिद्वद्धाबभूव ह | स्मृताश्चैते ततॊ गाग्याः क्षात्रोपेता द्विजातयः महावीर्यसुतश्चापि भीमस्तस्मादुभक्षयः | तस्य भार्या विशाला तु सुषुवे वै सुतत्रयम् त्रय्यारण पुष्करिणं तृतीयं सुषुवे कपिस् । फपेः क्षत्रवरा होते तयोः प्रोक्ता महर्षयः गाग्राः सांकृतयो वीर्याः क्षात्रोपेता द्विजातयः | संचिताऽऽङ्गिरसं पक्षं वृहत्क्षत्रस्य वक्ष्यति वृह क्षत्रस्य दायादः सुहोत्रो नाम धार्मिकः | सुहोत्रस्यापि दायादो हस्ती नाम वंभूव ह || तेनेदं निर्मितं पूर्वं नाम्ना वै हस्तिनापुरम् हस्तिनश्चापि दायादास्त्रयः परसधार्मिकाः । अजमीढो द्विजामीढः पुरुमीढस्तथैव च

  • अजमीढस्य पत्म्यस्तु शुभाः कुरुकुलोद्वहाः | नोलिनी केशिनी चैव धूमिनी च वराङ्गना

अजमीढस्य पुत्रास्तु तासु जाता कुलोद्वहाः । तपसोऽन्ते सुमहतो राज्ञो वृद्धस्य धार्मिज्ञाः भरद्वाजप्रसादेन शृणुध्वं तस्य विस्तरम् । अजमीढस्य केशिन्यां कण्ठः समभवत्किल ॥१५६ ॥१६० ॥१६१ ॥१६२ ॥१६३ ॥१६४ ॥१६५- ॥१६६ ।।१६७ ॥१६८ ॥१६६ इनमें नर शाली चार पुत्र उत्पन्न हुए | जिनके नाम थे, वृहत्क्षत्र, महावीर्य, नर और गाग्र ( गार्ग) ११५६-१५६। के सांकृति नामक पुत्र हुए, जिनके गुरुवीर्य और त्रिदेव नामक महान् तेजस्वी पुत्र हुए ये दोनों पुत्र सांकृत्य के नाम से विख्यात हैं । शिनिवद्ध? गाग्र के उत्तराधिकारी गाग्र्य के नाम से विख्यात हुए— ये सब क्षत्रियोचित गुण धर्म समन्वित ब्राह्मण कहे जाते हैं । महावीर्य के पुत्र भीम थे, उनसे उपक्षय नामक पुत्र को उत्पत्ति हुई, उपक्षय की पुत्री विशाला थी, उसने त्रय्यारुणि, पुष्करी और कपि नामक तीन पुत्रों को उत्पन्न किया, कपि के वंशज केवल उत्तम क्षत्रिय हुए और उन दोनो के महर्षि हुए । गाग्र्य और सांकृति के वंशज परम बलशाली क्षत्रिय थे, वे सव आङ्गिरस बृहस्पति के वंश में मिल गये, अब वृहत्क्षत्र के वंश का वर्णन कर रहा हूँ । १६००१६४ा वृहत्क्षत्र का उत्तराधिकारी पुत्र परम धार्मिक सुहोत्र था, सुहोत्र का उत्तरा- धिकारी हस्ती नाम से प्रसिद्ध था । उसी ने प्राचीनकाल में हस्तिनापुर का निर्माण किया था। राजा हस्तो के तीन परम धार्मिक उत्तराधिकारी पुत्र हुए, उनके नाम थे मजमोढ़ द्विजामीढ़ और पुरुमीढ़ |१६ -१६६ अजमीढ़ की कुरुवंश का उद्धार करने वाली परम सुन्दरी नोलिनी, केशिनी और धूमिनी नामक पत्नियाँ थी, उम सर्वोों से अजमीढ़ के धंशोद्धारक कई पुत्र उत्पन्न हुए । महान् तपस्या के उपरान्त राजा अजमीढ़ को वृद्धावस्था मे भरद्वाज की अनुकम्पा से इन पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। उनके वंश का विस्तारपूर्वक वर्णन मुनिये । ऐसी प्रसिद्धि है कि केशिनी में राजा अजमीढ़ के कण्ठ नामक पुत्र को उत्पत्ति हुई । १६७-१६९। कण्ठ का पुत्र न विद्यतेऽयं श्लोकः क. पुस्तके |