पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९५२

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'नवनवतितमोऽध्यायः ६३१ ॥११० ॥१११ बृहद्रथः सुतस्तस्य यस्माज्जज्ञे बृहन्मनः । बृहन्मनास्तु राजेन्द्रो जनयामास वै सुतम् नाम्ना जयद्रथं नाम तस्मादृढरथो नृपः । आसीदृढरथस्यापि विश्वजिज्जनमेजयः दायादस्तस्य चाङ्गेभ्यो यस्मात्कर्णोऽभवन्नृपः । कर्णस्य सुरसेनस्तु द्विजस्तस्याऽऽत्मजः स्मृतः ॥११२ ऋषय ऊचुः सूतात्मजः कथं कर्णः कथं चाङ्गस्य वंशजः । एतदिच्छाम वै श्रोतुमत्यर्थं कुशलो ह्यसि सूत उवाच ॥११५ बृहद्भानोः सुतो जज्ञे नाम्ना राजा बृहन्मनाः | तस्य पत्नीद्वयं चाऽऽसीच्चैद्यस्योभे च ते सुते ॥११४ यशोदेवी च सत्या च ताभ्यां वंशस्तु भिद्यते । जयद्रथस्तु राजेन्द्रो यशोदेव्यां व्यजायत ब्रह्मक्षत्रान्तरः सत्यविजयो नाम विश्रुतः । विजयस्य धृतिः पुत्रस्तस्य पुत्रो धृतव्रतः धृतव्रतस्य पुत्रस्तु सत्यकर्मा महायशाः । सत्यकर्मसुतश्चापि सुतस्त्वधिरथस्तु वै स कर्णं परिजाग्राह तेन कर्णस्तु सूतजः । एतद्वः कथितं सर्वं कर्णे यद्वै प्रचोदितम् ॥११६ ॥ ११७ ॥११८ ॥११३ वृहत्कर्मा का पुत्र राजा बृहद्रथ हुआ, उससे बृहम्मना नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई । राजेन्द्र बृहन्मना ने जयद्रथ नामक पुत्र को उत्पन्न किया, जिससे राजा दृढ़रथ को उत्पत्ति हुई । उस राजा दृढ़रथ का पुत्र विश्वविजयी राजा जनमेजय हुआ। उसके अङ्गों से राजा कर्ण हुआ है। जो उसका उत्तराधिकारी था | कर्ण का पुत्र सुरसेन हुआ, और उसका द्विज ( ध्वज) नाम से कहा जाता है |११० - ११२॥ ऋषियों ने कहा- सूत जी ! वे राजा कर्ण किस प्रकार सूत के पुत्र हुए ? और किस प्रकार वे ही राजा अंग के वंशज हुए ? आप इन प्राचीन कथाओं के परम कुशल ज्ञाता है : अतः इसे हम लोग सुनना चाहते हैं । ११३॥ सूत बोले- बृहद्भानु का पुत्र राजा बृहन्मना था । उस राजा बृहम्मना को दो पत्नियां थीं, जो दोनों चेदिनरेश को पुत्रियाँ थीं। उनके नाम थे, यशोदेवी और सत्या । इन्हीं दोनों पत्नियों से राजा का वंश अलग अलग हो गया, राजाधिराज जयद्रथ यशोदेवी में उत्पन्न हुआ । दूसरी देवी सत्या से ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों का उद्धारक परम प्रख्यात राजा विजय हुआ । उस विजय का पुत्र घृति हुआ, जिसका पुत्र ध्रु तवृत नाम से प्रसिद्धि हुआ । घृतव्रत का पुत्र महान् यशस्वी राजा सत्यकर्मा हुआ, उसी सत्यकर्मा का पुत्र सूत अधिरथ हुआ, उसी ने कर्ण का पालन पोषण किया था, इसी से कर्ण को सूत-पुत्र मानते हैं, कर्ण के विषय में जो कुछ कहा जाता है वह सब मैं आप को बतला चुका । इस प्रकार अङ्ग के वंश में उत्पन्न होनेवाले राजाओं का वर्णन मैंने विस्तार पूर्वक क्रमश कर दिया, अब इसके उपरान्त पुरु को प्रजाओं का वर्णन सुनिये |११४-११५॥