पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९५१

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६३० वायुपुराणम् सुनुर्धर्मरथस्यापि राजा चित्ररथोऽभवत् । अथ चित्ररथस्यापि राजा दशरथोऽभवत् ॥ लोमपाद इति ख्यातो यस्य शान्ता सुताऽभवत् ॥१०३ ॥१०४ [* स तु दाशरथिर्वीरश्चतुरङ्गो महामनाः | ऋष्यशृङ्गप्रसादेन जज्ञेऽय कुलवर्धनः चतुरङ्गश्च पुत्रस्तु पृथुलाश्व इति श्रुतः । पृथुलाश्वसुतश्चापि चम्पो नाम वमूव ह || चम्पस्य तु पुरी रम्या रम्या या मालिनी भवत् ] ॥१०५ + चम्पावती पुरी चम्पा चतुर्वर्णा च वै वसत् । षष्टिवर्षसहस्राणि चम्पावत्यां पुराऽवसत् ॥१०६ ब्राह्मणैः क्षत्रियैर्वैश्यैः सर्वे स्वेधर्मनुष्ठिते । सर्वे धर्म वै तपसा सर्वे विष्णुपरायणाः (?) ॥ पूर्णभद्रप्रसादेन हर्यङ्गोऽस्य सुतोऽभवत् जज्ञे वै तण्डिकरतस्य वारणं शुक्रवारणम् | आनयामास स महीं मन्त्रैर्वाहनमुत्तमम् हर्यङ्गगस्य तु राजा दायादो भद्ररथः किल । अथ भद्ररथस्याऽऽसीद्वृहत्कर्मा प्रजेश्वरः ।१०७ ॥१०८ ॥१०६ घमंरथ का पुत्र राजा चित्ररथ हुआ | उस चित्ररथ के पुत्र राजा दशरथ हुए । यही राजा दशरथ लोमपाद के नाम से विख्यात थे, जिनकी पुत्री शान्ता थी |१०२-१०३। राजा दशरथ का पुत्र महान् यशस्वी कुलोद्धारक परम वीर राजा चतुरङ्ग था, वह महात्मा ऋप्यऋङ्ग के अनुग्रह से उत्पन्न हुआ था। चतुरङ्ग का पुत्र राजा पृथुलाश्व सुना जाता है । पृथुलाश्व का चम्प नामक पुत्र हुआ । उस राजा चम्प की परम रमणीय मालिनी नामक नगरी थी । उसका दूसरा नाम चम्पावती भी था, उस मनोहर चम्पावती नगरी में चारों वर्णों के लोग निवास करते थे। उस चम्पावती नगरी में राजा चम्प ने साठ सहस्र वर्षों तक निवास किया था । ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य सभी जातियों के लोग अपने अपने धर्म पर रहते थे, सभी परम धार्मिक विचारोंवाले एवं भगवान् विष्णु के परम भक्त थे । पूर्णभद्र को अनुकम्पा से उस राजा चम्प का पुत्र हर्यङ्ग हुमा ।१०४-१०७। उस राजा हर्यङ्ग के पास तणिक नामक एक महान् बलशाली हाथो था जो पूर्व जन्म इन्द्र का ऐरावत था, राजा अपने मन्त्र बल से उस वाह्न रत्न को पृथ्वी पर बुलाया था। राजा हर्यङ्ग का उत्तरा- धिकारी राजा भद्ररथ हुआ, ऐसी प्रसिद्धि है कि राजा भद्ररथ का पुत्र राजा वृहत्कर्मा हुआ |१०८-१०१।

  • धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः ख. घ. ङ. पुस्तकेष्वेव ।

+ एतच्छ्लोकद्वयं घ. ङ. पुस्तकर्पोर्न । १. भवभूति ने उत्तररामचरित्र में रामचन्द्र के पिता महाराज दशरथ को पुत्री को शान्ता माना है, और ऋष्यशृङ्ग को देने को बात भी लिखी है, अन्य स्थानों पर उक्त महाराज दशरथ के रामचन्द्रादि चार पुत्रों हो के होने को कथा आती है, शान्ता को नहीं । इससे मालूम होता है कि शान्ता को उक्त महाराज दशरथ को पुत्री भवभूति ने भ्रान्तिवश माना है ? वह इसी दशरथ को पुत्री थी ।