पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९५०

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नवनवतितमोऽध्यायः ततः कालेन महता तपसा भावितः स वै । विधूय सानुजो दोषान्ब्राह्मण्यं प्राप्तवान्प्रभुः ततोऽब्रवीत्पिता चैनं पुत्रवानस्म्यहं प्रभो | सत्पुत्रेण त्वया तात कृतार्थोऽस्मि यशस्विना युक्तात्मा हि ततः सोऽथ प्राप्तवान्ब्रह्मणः क्षयम् । ब्राह्मण्यं प्राप्य कक्षीवान्सहस्रमसृजत्सुतान् कृष्णाङ्गा गौतमास्ते व स्मृताः कक्षीवतः सुताः । इत्येष दीर्घतमसो बलेर्वैरोचनस्य वै समागमः समाख्यातः संतानं चोभयोस्तयोः । बलिस्तानभिषिच्येह पञ्च पुत्रानकल्मषान् कृतार्थः सोऽपि योगात्मा योगमाश्रित्य च प्रभुः । अदृश्यः सर्वभूतानां कालाकाङ्क्षी चरत्युत तत्राङ्गस्य तु राजवें राजाऽऽसीद्दधिवाहनः । सापराधसुदेष्णाया अनपानोऽभवन्नृपः अनपानस्य पुत्रस्तु राजा दिविरथः स्मृतः । पुत्रो दिविरथस्याऽऽसीद्विद्वान्धर्मरथो नृपः x स वै धर्मरथः श्रीमान्येन विष्णुपदे गिरौ । सोमः शक्रेण सह वै यज्ञे पीतो महात्मना ६२६ X इत आरभ्य अन्त्यश्च भविता नप क. 'घ. पुस्तकयोः । फा०-११७ ॥६४ ॥६५ ॥६६ ॥६७ ॥६८ IIEE ॥१०० ॥ १०१ ॥१०२ विउल तपस्या की, जैसी तपस्या करने के लिये पिता ने उपदेश किया था। अपनी परम कठोर तपस्या के चल पर परम ऐश्वर्यशाली कक्षीवान् ने बहुत दिनों के उपरान्त सिद्धि प्राप्त की और अपने तथा अपने अनुज चक्षुष के भी पापों को नष्टकर ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया |६१-६४ दक्षीवान् के इस कर्म से पिता को परम प्रसन्नता हुई और वे बोले, सर्वसमर्थ पुत्र ! तुम जैसे योग्य पुत्र से मैं पुत्रवान् हूँ, परम यशस्वी सत्पुत्र को प्राप्त कर मै कृतार्थ हो गया ।' ऐसा कहने के उपरान्त महात्मा गौतम ने योग को साधना की और ब्रह्म के पद को प्राप्त किया । इधर कक्षीवान् ने ब्राह्मणत्व की प्राप्ति कर सहस्र पुत्रों की सृष्टि की । कक्षीवान् के वे पुत्र काले अंगोंवाले गौतम गोत्रीय कहे जाते है |९६५-६६३। विरोचन के पुत्र वलि को एवं दीर्घतमा की सन्ततियों का परस्पर समागम जिस प्रकार हुआ, उसे मैं आप लोगो को बतला चुका | महाराज बलि अपने उन पाँचों पुत्रों का राज्याभिषेक करने के उपरान्त कृतार्थ हो गया | योगात्मा परमऐश्वर्यशाली वह राजा बलि योग का आश्रय लेकर सभी जीवों से अदृश्य होकर काल की प्रतीक्षा करता हुआ तपस्या में अपना काल यापन करने लगा । बलि के उन पाँचों पुत्रों में राजर्षि अङ्गद का पुत्र दधिवाहन हुआ । देवी सुदेण्णा के अपराध के कारण दीर्घतमा के शापानुसार उसे मलमार्ग नही था। उस राजा दधिवाहन का दूसरा नाम अनपान भी था, अनपान का पुत्र राजा दिविरथ कहा जाता है । दिविरथ को पुत्र परम विद्वान् राजा धर्मरथ हुआ |६७ - १०१। इसी परम धार्मिक महाबलशाली श्रीसम्पन्न राजा धर्मरथ ने विष्णुपद नामक पर्वत पर इन्द्र के साथ एक यज्ञ में सोम रसका पान किया था। राजा इत्यन्त ग्रन्थो न विद्यते ग. पुस्तके | (इदमधं न विद्यते