पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९४७

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६२६ वायुपुराणम् प्रोतः स वै वरेणाथ च्छन्दयामास वै बलिम् । स च तस्माद्वरं वव्रे पुत्रार्थी दानवयंभः बलिरुवाच ॥६६ संतानार्थं महाभाग भार्याया मम मानद | पुत्रान्धर्मार्थसंयुक्तानुत्पादयितुमर्हसि ॥६७ ॥७० ● एवमुक्तस्तु तेनषिस्तथाऽस्त्वित्युक्तवाहितम् । सुदेष्णां नाम भार्यां स्वां राजाऽस्मै प्राहिणोत्तदा ॥६८ अन्धं वृद्धं च तं दृष्ट्वा न सा देवी जगाम ह | स्वां च धात्रेयकों तस्मै भूषयित्वा व्यसर्जयत् ॥६६ कक्षोवचक्षुषौ तस्यां शूद्रयोन्यास्मृषिर्यशो | जनयामास धर्मात्मा पुत्रावेतौ महौजसो कक्षोवचक्षुषौ तौ तु दृष्ट्वा राजा बलिस्तदा । प्राधोतो विधिवत्सम्यगोश्वरो ब्रह्मवादिनौ सिद्धौ प्रत्यक्षधर्माणो बुद्धौ श्रेष्ठतमावपि । नमैताविति होवाच वलिवॅरोचनस्त्वृषिम् नेत्युवाच ततस्तं तु ममैताविति चाब्रवोत् । उत्पन्नौ शूद्रयोनी तु भवन्छमासुरोत्तमो अन्धं वृद्धं च मां मत्वा सुदेष्णा महिषो तव । प्राहिणोदवसानाय शूद्रां धात्रेयक मम ततः प्रसादयामास पुनस्तमृषिसत्तमम् । वलिर्भार्या सुदेष्णां च भर्त्सयामास वै प्रभुः ॥७१ ॥७२ ।।७३ ।।७४ ॥७५ किया । बलि के इस व्यवहार से दीर्घतमा परम सन्तुष्ट हुए और वरदान देकर उसे प्रसन्न करना चाहा । दानव- पति बलि ने पुत्र को कामना से दीर्घतमा से वरदान याचना की।६४-६६। ने यलि ने कहा - मानियों के मान रक्षक ! महाभाग्यशालिन् । में सन्तान प्राप्ति की याचना आपसे कर रहा हूँ, आप धर्म, अर्थ, काम से समन्वित पुत्रों की उत्पत्ति मेरे लिये करें | ६७ ॥ बलि के इस प्रकार कहने पर दीर्घतमा ने कहा कि बहुत अच्छा, मुझे आपको प्रार्थना स्वीकार है । राजा बलि ने अपनी सुदेष्णा नामक रानी को सन्तान के लिये दीर्घतमा के पास जाने के लिये कहा ६८ दीर्घतमा को अन्धा और वृद्ध देखकर देवी सुदेष्णा उनके पास स्वयं नही गयो और अपनी धाय को विविध वस्त्राभूषणादि से विभूषित कर भेज दिया। उस शूद्रयोनि में जितेन्द्रिय वश्यामा दोघंतमा ने कक्षोवान् और चाक्षुप नामक दो धर्मात्मा पुत्रों को उत्पन्न किया, जो महान् तेजस्वी थे ।६६-७०। उन कक्षोवान् और चाक्षुष नामक पुत्रों को, जो भली भाँति पढ़ लिखकर ब्रह्मवेत्ता योगपरायण, परमबुद्धिमान्, सिद्ध, धर्मतत्त्वो के विचारक एवं श्रेष्ठ हो चुके थे, देखकर विरोचन पुत्र राजा बलि ने कहा कि ये दोनों हमारे पुत्र हैं क्या ? दीर्घतमा ने कहा, नहीं, ये तुम्हारे नहीं, हमारे पुत्र हैं; क्योंकि तुम्हारे छद्म से ये शुद्र योनि में उत्पन्न हुए हैं, ये असुरों मे श्रेष्ठ होंगे (?) तुम्हारी रानी सुदेष्णा ने मुझे अन्धा और वृद्ध मानकर अपमान करने के लिये मेरे पास अपनी एक शूद्रवर्ण धाय को भेज दिया था ।७१-७४। दीर्घंनमा की ऐसी बातें सुनकर राजा बलि ने उनकी पुनः पुनः प्रार्थना को और किसी