पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९४६

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नवनवतितमोऽध्यायः अवलेपं तु तं मत्वा शरद्वांस्तस्य नाक्षमत् । गोधर्मं वै बलं कृत्वा स्नुषां स सममन्यत विपर्यय तु तं दृष्ट्वा शरद्वान्प्रत्यचिन्तयत् । भविष्यमर्थं ज्ञात्वा च महात्मा च न मृत्युताम् प्रोवाच दीर्घतमसं क्रोधात्संरक्तलोचनः । गम्यागम्यं न जानीषे गोधर्मात्प्रार्थयन्त्रुषाम दुर्वृ त्तस्त्वं त्यजाम्येष गच्छ त्वं तेन कर्मणा । यस्मात्त्वमन्धो वृद्धश्च भर्तव्यो दुरनुष्ठितः ॥ तेनासि त्वं परित्यक्तो दुराचारोऽसि मे मतिः सूत उवाच कर्मण्यस्मिस्ततः क्रूरे तस्य बुद्धिरजायत । निर्भर्त्स्य चैव बहुशो बाहुभ्यां परिगृह्य च ॥ कोष्ठे समुद्र प्रक्षिप्य गङ्गाम्भसि समुत्सृजत् उह्यमानः समुद्रस्तु सप्ताहं स्रोतसा तदा । तं सस्त्रीको बलिर्नाम राजा धर्मार्थतत्त्ववित् ॥ अपश्यन्मज्जमानं तु लोयसाऽभ्याशमागतम् तं गृहोत्वा स धर्मात्मा बलिर्वैरोचनस्तदा । अन्तःपुरे जुगोपैनं भक्ष्यैर्भोज्यैश्च तर्पयन् 2" ॥५६ ॥६० ॥६१ ॥६२ ॥६३ ॥६४ ॥६५ एक बार कामवश होकर छेड़ने का उपक्रम किया, उनके अनाकानी करने और रोने पर भी वे अपने इस निन्द्य- कर्म से विरत नहीं हुए । दीर्घतमा के इस महान् गर्वमूलक अपराध ऋषि शरद्वान को सहन नहीं हुआ। उन्होंने देखा कि दीर्घतमा अपने बल के कारण झोटे भाई की स्त्री के साथ जो पुत्रवधू के समान है, समागम करा रहे है । इस महान् विपर्यय को देखकर महात्मा शरद्वान् को बड़ी चिन्ता हुई, किन्तु भविष्य में घटित होनेवाली घटना के प्रभाव को जानते हुए उन्होंने दीर्घतमा को मृत्यु का शाप नहीं दिया |५८-६०॥ अत्यन्त क्रोध से उनके नेत्र लाल हो गये आवेश में भर कर दीर्घतमा से बोले, अरे दुष्कर्मपरायण ! तू गम्य अगम्य कुछ नहीं जानता, पशुधर्म को प्रश्रय देकर पुत्रवधू के साथ समागम करना चाहता है। अब मैं तुझे छोड़ रहा हूँ, अपने इस नीच कर्म का फल भोग । अन्धे, वृद्ध, एवं जीविका चलाने में असमर्थ होकर भी तुम इतना नीच कर्म कर रहे हो, जिसे कोई नहीं करता, अतः मैं तुम्हें एक महान् दुराचारी समझ रहा हूँ, और इसीलिये तुम घर से बाहर निकाले गये हो ।६१-६२ सूत बोले- ऋषिवृन्द ! इतना कहने के उपरान्त दीर्घतमा की प्रवृत्ति क्रूर कर्म में हो गयो । तब ऋषि शरद्वान् ने उनकी बहुत भर्त्सना करके अपने दोनों बाहुओं से पकड़ कर एक बाक्स में बन्द कर समुद्र में बह जाने के लिये गंगा जल मे डाल दिया |६३| एक सप्ताह तक गंगा के स्रोतों में तैरते रहने के बाद दीर्घतमा को स्त्री समेत परम धार्मिक राजा बलि ने देखा । उस समय वे डूब रहे थे, किन्तु जल के प्रवाह से राजा के समीप पहुँच चुके थे । विरोचन पुत्र राजा बलि ने दीर्घतमा को जलराशि से पकड़ कर ऊपर ख़ोच कर बचा लिया और अपने अन्तःपुर में ले जाकर विविध प्रकार के खान पानादि से उन्हें सन्तुष्ट