पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९४२

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नवनवतितमोऽध्यायः मृगायास्तु मृगः पुत्रो नवाया नव एव तु | कृम्याः कृमिस्तु दर्शायाः सुव्रतो नाम धार्मिकः दृषद्वतीसुतश्चापि शिबिरौशीनरो द्विजाः । शिबेः शिवपुरं ख्यातं यौधेयं तु मृगस्य तु नवस्य नवराष्ट्रं तु कृमेस्तु कृमिला पुरी | सुव्रतस्य तथाऽऽम्बष्ठा शिबिपुत्रान्निबोधत शिवेस्तु शिवयः पुत्राश्चत्वारो लोकसंमताः । वृषदर्भः सुवीरस्तु केकयो मद्रकस्तथा तेषां जनपदाः स्फीताः केकया माद्रकस्तथा । वृषदर्भाः सूचीदर्भास्तितिक्षोः शृणुत प्रजाः तैतिक्षुरभवद्राजा पूर्वस्यां दिशि विश्रुतः | उशद्रथो महाबाहुस्तस्य हेमः सुतोऽभवत् हेमस्य सुतपा जज्ञे सुतः सुतयशा बली | जातो मनुष्ययोग्यां वै क्षीणे वंशे प्रजेप्सया महायोगी स तु वलिर्वद्धो यः स महामनाः । पुत्रानुत्पादयामास चातुर्वर्ण्यकरान्भुवि अङ्गं स जनयामास वङ्गं सुह्यं तथैव च । पुण्डु कलङ्गं च तथा बालेयं क्षत्रमुच्यते बालेया ब्राह्मणाश्चैव तस्य वंशकराः प्रभोः । बलेस्तु ब्रह्मणा दत्ता: वराः प्रीतेन धर्मतः माहयोगित्वमायुश्च कल्पायुः परिमाणकम् | सङ्ग्रामे चाप्यजेयत्वं धर्मे चैव प्रभावना ६२१ ॥२० ॥२१ ॥२२ ॥२३ ॥२४ ॥२५ ॥२६ ॥२७ ॥२८ ॥२६ ॥३० का पुत्र कृमि था, दर्वा का परम घर्मिक सुव्रत था | ऋपिवृन्द ! पाँचवी पत्नी दृषद्वती का पुत्र महाराज शिवि था, जो ओशीनर शिवि के नाम से विख्यात है। उसी महाराज शिवि का पुर शिवपुर के नाम से विख्यात है, इसी प्रकार मृग का यौधेयपुर, नव का नवराष्ट्र, कृमि को कृमिपुरी, और सुव्रत की अम्बष्टा नामक पुरी थी । अब शिवि के पुत्रों का वर्णन सुनिये । शिवि के चार पुत्र हुए, जिनका लोक में परम सम्मान था, सब शिविगण के नाम से विख्यात थे । उनके नाम वृषदर्भ, सुवीर केकय और मद्रक |२०-२३। उन चारों शिविपुत्रों के जनपद परम रमणीय केकय, माद्रक, वृषदर्भा और सूचीदर्भा के नाम से विख्यात हैं । अब तितिक्ष की प्रजाओं का वर्णन सुनिये | उस राजा तितिक्षु का पुत्र महाबाहु उशद्रथ पूर्वदिशा का परम यशस्वी राजा सुना जाता है। उसका पुत्र राजा हेम हुआ |२४-२५० हेम का पुत्र परम तपस्वी बलि हुआ । यह बलि महान योगी दैत्यराज बलि ही थे, जिन्हें भगवान वामन ने बाँधा था, सन्तति के अभाव में राजा हेम के वंश के विनाश उपस्थित होने पर इन्होंने मानवयोनि मे हेम का पुत्र होकर जन्म धारण किया था । इस राजा बलि ने पृथ्वी में चारों वर्गों की सृष्टि करनेवाले पुत्रों को उत्पन्न किया था, उन्होने अङ्ग, बङ्ग, मुझ, पुण्ड्र, कलिङ्ग नामक पुत्रों को उत्पन्न किया था। उस महाराज बलि के वंशज क्षत्रिय भी कहे जाते हैं और ब्राह्मण भो कहें जाते हैं | २६-२८ बलि के परम धार्मिक कार्यों से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसे महायोगी, एक कल्प की दीर्घायुवाला, संग्राम में अजेय एवं धर्म में परम निष्ठावान् होने का वरदान दिया था, इसके अतिरिक्त ब्रह्मा ने कहा था, बले तुम्हें समस्त त्रैलोक्य का दर्शन, सन्तनोत्पत्ति में प्रधानता, धर्मतत्त्व का फा० – ११६