पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९४३

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६२२ वायुपुराणम् त्रैलोक्यदर्शनं चैव प्राधान्यं प्रसवे तथा | बले चाप्रतिमत्वं वै धर्मतत्त्वार्थदर्शनम् चतुरो नियतान्वर्णास्त्वं वै स्थापयितेति च । इत्युक्तो विभुना राजा बलिः शान्ति परां ययौ कालेन महता विद्वान्स्वं वै स्थानमुपागतः । तेषां जनपदाः स्फोता वङ्गाङ्गसुह्मफास्तथा पुण्ड्राः फलिङ्गाश्च तथा तेषां वंशं निबोधत | तस्य ते तनयाः सर्वे क्षेत्रजा मुनिसंभवाः ॥ संभूता दीर्घतमसः सुदेण्णायां महौजसः ऋषय ऊचुः कथं बलेः सुताः पञ्च जनिताः क्षेत्रजाः प्रभो । ऋषिणा दीर्घतपसा एतन्नो ग्रूहि पृच्छताम् सूत उवाच अशिजो नाम विख्यात आसीद्धीमानृषिः पुरा | भार्या वै ममता नाम वनवास्य महात्मनः अशिजस्य कनीयांस्तु पुरोधा यो दिवौकसाम् । वृहस्पतिवृ हत्तेजा ममतां सोऽभ्यपद्यत उवाच ममता तं तु वृहस्पतिमनिच्छती | अन्तर्वत्न्यस्मि ते भ्रातुर्ज्येष्ठरयाष्टमिता इति * ॥३१ ||३२ ||३३ ॥ ३४ ॥३५ ॥३६ ॥३७ ॥३८ के नाम चिन्तन, एवं प्रतिद्वन्दी का सर्वथा अभाव रहेगा, तुम ब्राह्मण क्षत्रियादि चारों वर्गों की स्थापना करनेवाला होगा | भगवान् ब्रह्मा के इस वरदानात्मक वचन को सुनकर राजा बलि को परम शान्ति प्राप्ति हुई | २९-३२ । वरदान के अनुसार दीर्घकाल के अनन्तर वह परम विद्वान राजा बलिः पुनः अपने स्थान को प्राप्त हुआ । बलि के उन पुत्रों के परम रमणीय देश उन्ही 'नामों के अनुसार वंग अंग, सुझक, पुण्डू और क से विख्यात हैं | अब उनके वंशजों का विवरण सुनिये । राजा के वलि के ये पुत्र मुनि के अंश क्षेत्रज पुत्र थे । महान तेजस्वी दीर्घतमा ऋषि के संयोग से ये बलि की स्त्री सुदेष्णा में थे |३३-३४। से बलि के उत्पन्न हुए ऋपियों ने पूछा- सूत जी ! महाराज बलि के वे पाँचों पुत्र किस प्रकार दीर्घतमा ऋषि के संयोग से उनके क्षेत्र (पत्नी) में उत्पन्न हुए, इसे हम लोग जानना चाहते हैं, बतलाइये |३५| सूत वोले- ऋषिवृन्द ! प्राचीनकाल में एक अशिज नामक परम विद्वान् ऋषि विख्यात हो गये है, उन परम माहात्मा ऋषि की पत्नी का नाम ममता था | अशिज के छोटे भाई देवताओं के पुरोहित परम तेजस्वी बृहस्पति थे, एक बार वे कामवश होकर ममता के पास गये । देवी ममता ने वृहस्पति के प्रति अपनी इच्छा प्रकट नही को | वे बोलीं, में इस समय तुम्हारे ज्येष्ठ भाई के सयोग से गर्भवती हूँ, वृहस्पति !

  • ज्येष्ठस्येत्यादिपादस्त्रुटितो ग घ ङ. पुस्तकेषु |