पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९३६

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अष्टनवतितमोऽध्यायः त्रेयायुगे तु दशमे दत्तात्रेयो बभूव ह | नष्टे धर्मे चतुर्थश्च मार्कण्डेयपुरः सरः (*पञ्चमः पश्चदश्यां तु त्रेतायां संबभूव ह | मांधातुश्चक्रवर्तित्वे तस्थौ तथ्यपुरःसरः एकोनविंशे त्रेतायां सर्वक्षत्रान्तकोऽभवत् । जामदग्न्यस्तथा षष्ठो विश्वामित्रपुरःसरः ) चतुर्विंशे युगे रामो वशिष्ठेन पुरोधसा | सप्तमो रावणास्यार्थे जज्ञे दशरथात्मजः अष्टमो द्वापरे विष्णुरष्टाविंशे पराशरात् । वेदव्यासस्ततो जज्ञे जातूकर्णपुरःसरः + तथैव नवमो विष्णुरदित्याः कश्यपात्मजः । देवक्या वसुदेवात्तु ब्रह्मगार्ग्यपुरःसरः अप्रमेयो नियोज्यश्च यत्र कामचरो वशी | क्रीडते भगवाँल्लोके बाल: क़ोडनकैरिव न प्रमातुं महाबाहुः शक्योऽसौ मधुसूदनः । परं परममेतस्माद्विश्वरूपात्र विद्यते अष्टविंशतिमे तद्द्वापरस्वांशसंक्षये | नष्टे धर्मे तदा जज्ञे विष्णुर्वष्णिकुले प्रभुः कर्तु धर्मव्यवस्थानमसुराणां प्रणाशनम् । मोहयन्सर्वभूतानि योगात्मा योगमायया ६१५ ॥८८ ॥८६ ॥६० ॥६१ ॥६२ ॥६३ ॥६४ ॥६५ ॥६६ ॥६७ योनि में भी उत्पन्न हुए थे। उनकी ये तीन सम्भूतियाँ कल्याणदायिनी देवयोनि को थीं। मनुष्य योनि में उनकी जो सात सम्भूतियाँ हैं, वे भी मृगु के शापवश हुई थीं, उन्हें सुनिये । दसवें त्रेतायुग में, जब कि धर्म का ह्रास हो रहा था, मार्कण्डेय के साथ दत्तात्रेय के रूप में उत्पन्न हुए थे, यह उनका चतुर्थं अवतार था । पन्द्रहवें त्रेतायुग में चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता के शासनकाल में तथ्य समेत उनका अवतार हुआ था, यह पाचव अवतार था |८७-६०। फिर उन्नीसवें त्रेतायुग में विश्वामित्र के साथ जमदग्नि के पुत्र परशुराम के रूप में समस्त क्षत्रियकुल संहारक होकर उन्होंने छठवां अवतार धारण किया था। फिर चोबीसवें त्रेतायुग में पुरोहित वसिष्ठ के साथ रावण के विनाशार्थ दशरथ पुत्र रामचन्द्र के रूप में उन्होंने सातवीं बार जन्म ग्रहण किया | इसी प्रकार अट्ठाइसवें द्वापरयुग में भगवान् विष्णु ने जातकणं के साथ महर्षि पराशर के संयोग से वेदव्यास के रूप में आठवाँ अवतार धारण किया था। उसी प्रकार नवीं बार अदिति स्वरूप देवकी के गर्भ के कश्यप स्वरूप वसुदेव के पुत्र होकर ब्रह्मा और गार्ग्य के साथ विष्णु ने अवतार धारण किया था। उन भगवान् का वर्णन शब्दों द्वारा नहीं किया जा सकता। वे भक्तों के उपकार करनेवाले हैं, इच्छानुरूप विचरण करनेवाले हैं, जितेन्द्रिय हैं, लोक में भगवान् उसी तरह की क्रीडा करते हैं जैसे बालक खिलौनों से |११-१९५१ वे महाबाह मधुसूदन शब्दों द्वारा प्रमाणित नहीं किये जा सकते । यह समस्त विश्व उन्हीं से व्याप्त है, वे इससे भी परे हैं, स्वरूप में इनके समान कोई नहीं है । अट्ठाइसवें द्वापरयुग के कुछ अंश व्यतीत हो जाने पर, जब

  • एतच्चिान्तर्गतग्रस्थो घ. पुस्तके नास्ति । + अयं श्लोको न विद्यते घ. ङ. पुस्तकयोः ।