६१४ वायुपुराणम् स वामनो दिवं खं च पृथिवीं च द्विजोत्तमाः । त्रिभिः क्रमैविश्वमिद जगदाक्रामत प्रभुः अत्यरिच्यत भूतात्मा भास्करं स्वेन तेजसा । प्रकाशयन्दिशः सर्वाः प्रदिशश्च महायशाः शुशुभे स महाबाहुः सर्वलोकान्प्रकाशयन् । आसुरीं श्रीयमाहृत्य त्रील्लो कांच जनार्दनः ॥ सपुत्रपौत्रानसुराम्पातालतलमानयत् ॥७८ ॥७६ ॥८० ॥८१ ॥८२ ॥८३ ।।८४ नमुचिः शम्बरश्चैव प्रह्लादश्चैव विष्णुना | क्रूरा हता विनिर्धूता दिशा संप्रतिप्रेदिरे महाभूतानि भूतात्मा सविशेषाणि माधवः | कालं च सकलं विप्रांस्तत्राद्भुतमदर्शयत् तस्य गात्रे जगत्सर्वमात्मानमनुपश्यति । न किंचिदस्ति लोकेषु यदव्याप्तं महात्मना तद्वै रूपमुपेन्द्रस्य देवदानवमानवाः । दृष्ट्वा संमुमुहः सर्वे विष्णुतेजोविमोहिताः बलि: सितो महापाशैः सवन्धुः ससुहृद्गणः । विरोचनकुलं सर्वं पाताले संनिवेशितम् ततः सर्वामरैश्वर्यं दत्त्वेन्द्राय महात्मने । मानुषेषु महावाहुः प्रादुरासीज्जनार्दनः एतास्तित्रः स्मृतास्तस्य दिव्याः संभूतयः शुभाः । मानुष्याः सप्त यास्तस्य शापजांस्तान्निबोधत ॥८७ ॥८५ ॥८६ प्रसन्नता हो रही थी । ऋषिवृन्द ! किन्तु उस वामन रूपधारी भगवान् ने अपने तीन पगो से स्वर्ग, आकाश एवं पृथ्वी तीनो लोकों को नाप लिया, सर्वसमर्थ प्रभु ने केवल तीन पगो मे इस समस्त जगत् को आक्रान्त कर लिया १७६-५८। समस्त जीवों के पालक भूतात्मा भगवान् ने उस समय अपने तेजोवल से भास्कर का भी अतिरेक कर दिया था। अपने महान् प्रखरतेज से महान् यशस्वी भगवान् ने समस्त दिशाओं एवं विदिशाओं को प्रभासित कर दिया था। समस्त लोकों को प्रकाशित करनेवाले भगवान् की उस समय अपूर्व शोभा हुई थी । जनार्दन भगवान् ने इस प्रकार समस्त आसुरी सम्पत्ति एवं समृद्धि को छोनकर नमुचि, शम्बर, प्रह्लाद प्रभृति असुरों को पुत्र पौत्रादिकों समेत पाताल लोक को पहुंचा दिया था ।७६-८०३। क्रूर प्रकृति दैत्यों को भगवान् विष्णु ने मार डाला था और कितनों को भय से कम्पित कर अन्यान्य दिशाओं में भगा दिया था | भूतात्मा, लक्ष्मीपति भगवान् ने इस प्रकार समस्त जीवो एवं पृथ्वी आकाशादि महाभूतों को भी सुखी कर दिया था, उस समय उन्होंने समस्त कालों में वर्तमान रहनेवाले अपने अद्भुत स्वरूप को ब्राह्मणों को दिखाया था । उन ब्राह्मणो ने जगदात्मा के उस शरीर में समस्त चराचर जगत् का दर्शन किया था, एवं अपने को भी उनमे स्थित देखा था। उन्होंने देखा कि जगत् में कोई ऐसी वस्तु को सत्ता नहीं है, जिसमे वह महान् आत्मा व्याप्त न हो । उस समय भगवान् विष्णु के उस महान् तेज से विमोहित देवताओ, दानवो एव मनुष्यों ने उपेन्द्र के उस अद्भुत रूप का दर्शन किया था और वे सब मोह को प्राप्त हो गये थे । सुहृद् एवं परिवार वर्ग के साथ बलि को पाश में बांधकर विरोचन के समस्त कुल को पाताल लोक में प्रविष्ट करा दिया |८१-८६। तदनन्तर संसार के समस्त ऐश्वर्य को महात्मा इन्द्र को प्रदान किया। महाबाहु जनार्दन मनुष्य 1