पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९३४

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अष्टनवतितमोऽध्यायः जज्ञे पुनः पुनविष्णुर्यज्ञे च शिथिले प्रभुः । कर्तु' धर्मव्यवस्थानमधर्मस्य च नाशनम् प्रह्लादस्य निदेशे तु येऽसुरा न व्यवस्थिताः । मनुष्यवध्यांस्तान्सर्वान्ब्रह्माऽनुव्याहरत्प्रभुः धर्मान्नारायणस्तस्मात्संभूतश्चाक्षुषेऽन्तरे | यज्ञं प्रवर्तयामास चैत्ये वैवस्वतेऽन्त रे । प्रादुर्भावे तदाऽन्यस्य ब्रह्मैवाऽऽसीत्पुरोहितः । चतुर्थ्या तु युगाख्यायामापन्नेष्वसुरेष्वथ संभूतः स समुद्रान्तहिरण्यकशिपोर्वधे । द्वितीयो नरसिंहोऽभूद्रदः सुरपुस्सरः बलिसंस्थेषु लोकेषु त्रेतायां सप्तमे युगे । दैत्यैस्त्रैलोक्य आक्रान्ते तृतीयो वामनोऽभवत् संक्षिप्याऽऽत्मानमङ्गेषु बृहस्पतिपुरस्सरम् | यजमानं तु दैत्येन्द्रमदित्याः कुलनन्दनः ॥ द्विजो भूत्वा शुभे काले बाल वैरोचनं पुरा त्रैलोक्यस्य भवानराजा त्वयि सर्वं प्रतिष्ठितम् | दातुमर्हसि मे राजन्विकमांस्त्रोनिति प्रभुः ददामोत्येव तं राजा बलिवँरोचनोऽब्रवीत् । वामनं तं च विज्ञाय ततोऽनुमुदितः स्वयम् ६१३ ॥६६ ॥७० ॥७१ ॥७२ ॥७३ ॥७४ ॥७५ ॥७६ ॥७७ भगवान् विष्णु घर्म की व्यवस्था एवं अधर्म के नाश के लिये जन्म धारण करते हैं |६७-६६। चाक्षुष मन्वन्तर में असुर गण प्रह्लाद की आज्ञा में स्थित नहीं थे । मनुष्यों द्वारा मारे जा सकते थे, उन सब का विनाश करने के लिये भगवान् ब्रह्मा ने इस प्रकार बतलाया है कि उनके विनाश एवं धर्म की रक्षा के लिये नारायण का जन्म हो जाता है । वैवस्वत मन्वन्तर मे इसी प्रकार यज्ञो का प्रवर्तन हुआ | उनके उस प्रार्दुभाव में स्वयं ब्रह्मा पुरोहित थे । चौथे युग में जब कि असुर गण बहुत अत्याचारी हो गये थे, वे समुद्र के मध्य भाग में प्रार्दुभूत हुए थे । तदनन्तर हिरण्यकशिपु के वध के लिये देवगणों के साथ भीषण नरसिंह रूप धारण कर उम्होने द्वितीय अवतार धारण किया १७०-७३। तदनन्तर सातवें त्रेता युग में, जिस समय दैत्यराज बलि समस्त लोकों का एक मात्र अधीश्वर था, तीनों लोक असुरों के भय से आतंकित थे, ऐश्वर्यशाली भगवान् विष्णु ने वामन अवतार धारण किया । यह उनका तृतीय अवतार था । उस समय भगवान् ने अपने को अंगों में समेट कर छोटा बना लिया था । वृहस्पति को आगे कर अदिति के कुल को आनन्दित करनेवाले भगवान् यज्ञ के अनुष्ठान में निरत दैत्येन्द्र विरोचन के पुत्र बलि की यज्ञशाला में ब्राह्मण वेश धारण कर पहुँचे थे ।७४-७५१ उपयुक्त शुभ समय देखकर उन्होंने निवेदन किया कि हे राजन् ! आप इस समस्त त्रैलोक्य के राजा हैं, आपमें संसार की समस्त सिद्धियां विद्यमान: हैं, आप सर्व- समर्थ एवं प्रजाओं के मन को आनन्दित करनेवाले है, अत मुझे तीन पग भूमि का दान करे । भगवान् की ऐसी बातें सुनकर विरोचनपुत्र बलि ने उत्तर दिया कि आपको तीन पग भूमि मैं अवश्य दूँगा | उसने ब्राह्मणवेशधारी भगवान् को आकृति में अत्यन्त छोटा समझकर ऐसा कहा था, उसे इस दान में बड़ी फा०-११५