पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९३७

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६१६ वायुपुराणम् ॥६८ IIEE ॥१०० ॥१०१ ॥१०२ प्रविष्टो मानुषीं योनि प्रच्छन्नश्चरते महीम् | विहारार्थं मनुष्येषु सान्दीपनिपुरःसरम् यन्त्र कंसं च सात्वं च द्विविदं च महासुरम् | अरिष्टं वृषभं चैव पूतनां केशिनं हयम् नाग कुवलयापोडं मल्लराजगृहाधिपम् | दैत्यान्मानुपदेहस्थाम्सुदयामास वीर्यवान् छिन्नं वाहुसहस्रं च बाणस्याद्भुतकर्मणः | नरकच हतः संख्ये यवनश्च महावलः हतानि च महीपानां सर्वरत्नानि तेजसा | दुराचाराश्च निहता पार्थिवा, ये रसातले एते लोकहितार्थाय प्रादुर्भावा महात्मनः । अस्मिन्नेव युगे क्षोणे संध्याश्लिष्टे भविष्यति कल्किविष्णुयशा नाम पाराशर्यः प्रतापवान् | दशमो भाव्यसंभूतो याज्ञवल्क्यपुरःसरः अनुकर्षन्सर्वसेनां हस्त्यश्वरथसंकुलाम् । प्रगृहीतायुधैविप्रैर्वतः शतसहस्रशः नात्यर्थं धार्मिका ये च ये च धर्मद्विषः क्वचित् । उदोच्यान्मध्यदेशांश्च तथा विन्ध्यापरान्तिकान् ॥१०६ तथैव दाक्षिणात्यांश्च द्रविडान्सिहलैः सह । गान्धारान्पारदांश्चैव पह्नवान्यवनाञ्शकान् ॥१०७ ॥१०३ ॥१०४ ॥१०५ धर्म नष्ट हो जाता है तो वे प्रभु विष्णु वृष्णिवंण में धर्म की संस्थापना एवं अधर्म के विनाश के लिए जन्म धारण करते है | योगात्मा अपनी योगमाया से समस्त जीवनिकायों को मोहित कर मनुष्य योनि में जन्म धारण करने पर भी प्रच्छन्न स्वरूप से समस्त पृथ्वी भर मे विचरण करते हैं। उस अवतार में सान्दीपनि के साथ मानव समाज में अपनी लीला दिखाने के लिये वे भगवान् प्रादुर्भूत होते हैं १९६६ उस अवतार में कंस, साल्व, द्विविद, अरिष्ट, वृषभ, पूतना, केशी, नाग, कुवलयापोड, मल्लराज गृहाधिप प्रभृति अमुरों का, जो मानवदेहधानी दैत्य थे, महाबलशाली भगवान् ने संहार किया। उसी अवतार में उन्होंने अद्भुत पराक्रम- शाली वाणासुर को सहस्र बाहुओं को काट डाला था । युद्ध में महान् पराक्रमी नरकासुर एवं कालयवन का वध किया था । बड़े-बढ़े राजाओं के समस्त बहुमूल्य रत्नों के आभूपणादि को उन्होंने अपने अनुपम तेज से छीन लिया था । उसी समय उन भगवान् ने रसातल निवासी अनेक पापाचारपरायण भूपतियों का भी संहार किया था |१००-१०३। महान् ऐश्वर्यशाली भगवान् के ये अवतार लोक रक्षा के लिए हुए थे। इसी कलियुग के सन्ध्यांश में जबकि इसकी समाप्ति हो जायगी, पराशर तनय प्रतापशाली विष्णुयशा याज्ञवल्क्य के साथ कल्कि नामक अवतार धारण करेंगे। यह उनका दसवाँ अवतार होगा । ये अनेक प्रकार की सेना साथ लेकर, जिसमें हाथी, घोड़े और रथों की भरमार रहेगी, लाखों की संख्या में शस्त्रास्त्र से सुसज्जित वित्रगणों से संयुक्त होकर एक महान् विनाश उपस्थित करेंगे । उस समय जितने घोर अधार्मिक होंगे, धर्मं से द्वेष करनेवाले होंगे, उत्तर दिग्वर्ती, मध्यदेशीय विन्ध्यगिरि के उस पार के रहनेवाले सुदूर दक्षिण दिशा के द्रविणादि, सिंहल देशीय, गान्धार, पारद, पह्नव, यवन, शक, F