पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९३१

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६१० घायुपुराणम् त्वया पृष्टा वयं तेन देवाचार्येण मोहिताः | भक्तानर्हसि नस्त्रातुं ज्ञात्वा दीर्घेण चक्षुषा यदि नस्त्वं न कुरुषे प्रसादं भृगुनन्दन | अपध्यातास्त्वया ह्यद्य प्रवेक्ष्यामो रसातलम् सूत उवाच ज्ञात्वा काव्यो यथातत्त्वं कारुण्येनानुकम्पया | एवं शुक्नोऽनुनीतः स ततः फोपं न्ययच्छत उवाचेदं न भेतव्यं न गन्तव्यं रसातलम् । अवश्यंभावी ह्यर्थोऽयं प्राप्तो वो मयि जाग्रति न शक्यमन्यथाकर्तुमदृष्टं हि वलवत्तरम् | संज्ञा प्रनष्टा या वोऽद्य कामं तां प्रतिलप्स्यथ प्राप्तः वर्यायकालो व इति ब्रह्माऽभ्यभाषत । मत्प्रसादाच्च युष्माभिर्भुक्तं त्रैलोक्यमूजितम् युगाख्या दश संपूर्णा देवानाम्य मूर्धनि | तावन्तमेवं कालं वै ब्रह्मा राज्यमभाषत सार्वाणके पुनस्तस्य राज्यं किल भविष्यति । लोकानामीश्वरो भावो पौत्रस्तव पुनर्वलिः एवं किलमहं प्रोक्तः पौत्रस्ते ब्रह्मणा स्वयम् । तथा हृतेषु लोकेषु तपोऽस्य न किलाभवत् ।।४५ ।।४६ ॥४७ ॥४८ ॥४६ ॥५० ॥५१ ॥५२ ॥५३ पर रक्षा को है, आप अपनी दिव्य दृष्टि से यह जान सकते हैं कि हमें देवाचार्य ने ठग लिया था, हम आप के भक्त है, हमारी रक्षा कीजिये । हे भृगुनन्दन | यदि आज आप हम लोगों को रक्षा नहीं करते, तो फिर आप से अपमानित होकर हम लोग रसातल को जा रहे हैं ।४४-४६ सूत बोले- ऋषिवृन्द ! दैत्यों एवं दानवों के इस प्रकार निवेदन करने पर शुक्राचार्य को सब बातें यथार्थतः ज्ञात हुईं, उनका कोष दूर हो गया, दैत्यों के ऊपर उन्हें बड़ी करुणा हुई, अनुकम्पा के स्वर में यह बोले, दैत्यो ! डरो मत, रसातल मत जाओ | किन्तु अवश्य घटित होनेवाली यह घटना तो मेरे प्रयत्नशील रहने पर भी घटित होगी १४७-४८॥ अदृष्ट महावलवान् होता है, उसे हम टाल नहीं सकते । तुम लोगों की चेतना नष्ट होने का आज जो अभिशाप मैंने दिया है, उसे तो अवश्यमेव भोगना पड़ेगा । ब्रह्मा ने यह कहा है, अर्थात् उनको यह अभीष्ट है कि तुम लोगों का यह अवनतिकाल प्रारम्भ हो, अतः वह अवनति का क्रम प्राप्त हो गया है। मेरे अनुग्रह से तुम लोगो ने त्रैलोक्य की समस्त समृद्धियो का उपभोग किया है |४६-५०१ देवताओं के शिर पर आक्रमण कर राज्य प्राप्त किये हुए तुम लोगो के इस युग व्यतीत हो चुके, उतने ही समय तक का राज्य ब्रह्मा ने तुम लोगों के लिए कहा है | सार्वाणिक मन्वन्तर के आने पर तुम्हें पुनः निश्चय ही राज्य की प्राप्ति होगी । उस समय तुम्हारा पौत्र वलि समस्त लोको का अधोश्वर होगा |५१-५२। इन सव वातो को मुझसे स्वयं ब्रह्मा ने कहा है, जो मैं कह रहा हूं, वे अवश्यमेव घटित होगी, तुम्हारे पौत्र बलि से समस्त लोक छिन जायेंगे | उसके तपोबल से कुछ न होगा तब वह निष्काम भाव से तपस्या मे निरत होगा, उसकी प्रवृत्तियाँ निस्वार्थ होगी, उस समय अजन्मा मे