पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९३२

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अष्टनवतितमोऽध्यायः यस्मात्प्रवृयत्तश्चास्य न कामानभिसंधिताः । तस्मादजेन प्रीतेन दत्तं सावणिकेऽन्तरे देवराज्यं बलेर्भाव्यमिति मामीश्वरोऽब्रवीत् । तस्माददृश्यो भूतानां कालकाङ्क्षी स तिष्ठति प्रोतेन चामरत्वं वै दत्तं तुभ्यं स्वयंभुवा | तस्मान्निरुत्सुकस्त्वं वै पर्यायं सह माकुलः न च शक्यं ममा तुभ्यं पुरस्ताद्वै विसर्षितुम् | ब्रह्मणा प्रतिषिद्धोस्मि भविष्यं जानता प्रभो इमौ च शिष्यौ द्वौ मह्यं तुल्यावेतौ बृहस्पतेः । दैवतैः सह संरब्धान्सर्वान्वो धारयिष्यतः सूत उवाच ६११ ॥५४ ॥५५ ॥५६ ॥५७ ॥५८ ॥५६ एवमुक्तास्तु दैतेयाः काव्येनाक्लिष्टकर्मणा । ततस्ताभ्यां ययुः सार्धं प्रह्लादप्रमुखास्तदा अवश्यंभावमर्थत्वं ( ? ) श्रुत्वा शुक्राच्च दानवाः । सकृदाशंसमानास्ते जयं काव्येन भाषितम् ॥६० दंशिताः सायुधाः सर्वे ततो देवान्समाह्वयन् । अथ देवासुरान्दृष्ट्वा सङ्ग्रामे समुपस्थितान् ||६१ ने ब्रह्मा प्रसन्न होकर सावर्णिक मन्वन्तर में उसे अमरत्व प्रदान करेगे १५३-५४। देवताओं का समस्त वैभव एवं साम्राज्य बलि को प्राप्त होगा - ऐसा ब्रह्मा ने मुझसे कहा है। इसलिए सभी प्राणधारियों से अदृश्य होकर उपयुक्त समय की प्रतीक्षा करते हुए वह कालपायन करता है। इस समय किसी प्रकार की उत्सुकता एवं व्याकुलता के बिना काल के इस चक्र का सहन करो, मैं तुम्हारी इस समय के आने के पूर्व किसी प्रकार रक्षा नहीं कर सकता । हे सर्वसमर्थ ! भविष्य की सब बातों को जाननेवाले स्वयं ब्रह्मा जी ने इस विषय में मुझे कुछ कहने से रोका है। बृहस्पति के शिष्य देवगण, और हमारे शिष्य तुम लोग - दोनों ही हमारे लिए यद्यपि समान हो, तथापि देवताओं के साथ युद्धभूमि में विरुद्ध लड़नेवाले तुम सब की हम और देवताओं की वृहस्पति रक्षा करेंगे ।५५-५८ सूत बोले- ऋषिवृन्द ! अपने यजमानों के उपकार में सर्वदा निरत रहने वाले शुक्राचार्य के इस प्रकार कहने पर प्रह्लाद प्रमुख दैत्यगण उम दोनों के साथ गये । अवश्य घटित होनेवाली घटना तो घटकर ही रहेगी - ऐसी शुक्रचार्य की बातें सुनकर दानवों ने यह विर्तक किया कि शुक्राचार्य ने तो हम लोगों को एक बार विजय प्राप्ति की बात बतलायी ही है अतः युद्ध हो क्यों न किया जाय ? ऐसा निश्चय कर उन सबों ने अस्त्र-शस्त्रादि धारण कर युद्ध के लिये देवताओं का आह्वान किया। देवताओं ने संग्राम के लिए असुरों को जब तैयार देखा तो कवच आदि धारण कर युद्ध करने के लिये आ गये और घोर युद्ध करने लगे । वह घोर देवासुर संग्राम सौ वर्षों तक चलता

  • अत्र संधिराषः ।