पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९१६

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सप्तनवतितमोऽध्यायः ८६५ ॥१०४ काव्यो 'दृष्ट्वा 'स्थितान्देवांस्तत्र देवोऽभ्यचिन्तयत् | तानुवाच ततो ध्यात्वा पूर्ववृत्तमनुस्मरन् ॥१०२ त्रैलोक्यं विजितं सर्वं वामनेन त्रिभिः क्रमैः । बलिर्बद्धो हतो जम्भो निहतश्च विरोचनः ॥१०३ महार्हेषु द्वादशसु सङ्ग्रामेषु सुरैर्हताः । तैस्तैरुपायैर्भूयिष्ठा निहता ये प्रधानतः किंचिच्छिष्टास्तु वै यूयं युद्धेष्वन्त्येषु वै स्वयम् | नीति वो हि विधास्यामि कालः कश्चित्प्रतीक्ष्यताम् ॥ यास्याम्यहं महादेवं यथार्थे विजयाय वः | अग्निमाप्याययेद्धोता मन्त्रैरेव बृहस्पतिः ततो यास्यामहं देवं मन्त्रार्थे नीललोहितम् । युष्माननुग्रहीष्यामि पुनः पश्चादिहाऽऽगतः यूयं तपश्चरध्वं वै संवृता वल्कलैवने । न वै देवा वधिष्यन्ति यावदागमनं मम अप्रतीपांस्ततो मन्त्रान्देवात्प्राप्य महेश्वरात् । [*योत्स्यामहे पुनर्देवांस्ततः प्राप्स्यथ वै जयम् ततस्त कृतसंवादा देवानुचुस्ततोऽसुराः । न्यस्तवादा वयं सर्वे लोकान्यूयं क्रमन्तु वै] ॥१०६ ॥१०७ ॥१०८ ॥१०६ ॥११० विक्षत शरीरवाले, परभ दोन दिति के पुत्रों को शीघ्रता पूर्वक अपनी ओर दौड़े आते हुए देखा और वहीं समोप मे खड़े हुए निठुर देवताओं को भी देखा । तदनन्तर ध्यान करके पूर्व घटित घटनाओं को स्मरण कर दैत्यो ने शुक्राचार्य से कहा - 'वामन ने अपने तीन पगो से समस्त त्रैलोक्य को जीत लिया, बलवान् बलि बांधा गया, परम बलवान् जम्भ एवं विरोचन का संहार हुआ, इस प्रकार पूर्वकाल में होने वाले बारह घोर संग्रामों में देवताओं ने अपने सफल उपायों से प्रमुख प्रमुख दैत्यों का संहार किया है | १००-१०४। आप लोग थोड़ी संख्या मे शेष रह गये है, अब इन अन्तिम युद्धों मे आप सब भी विनष्ट हो रहे हैं, मैं स्वयं अब आप लोगों की विजय प्राप्ति के लिये एक नीति (चाल) बतला रहा हूँ कि आप लोग कुछ समय की प्रतीक्षा करे । आप लोगो की विजय के लिए मैं किसी मंत्र प्राप्ति के उद्देश्य महादेव जी के पास जा रहा हूँ । उधर देवपक्ष मे उनके गुरु बृहस्पति मंत्रो द्वारा अग्नि को सन्तुष्ट कर रहे हैं, अर्थात् हवन कर रहे हैं । १०-१०६ इसलिए हम भी मंत्र प्राप्ति के लिए भगवान् नीललोहित के पास जा रहे है, थोड़े दिन बाद जब मैं यहाँ आ जाऊँगा तब आप सब पर अनुग्रह करूँगा | आप लोग वन में वल्कल धारणकर तपस्या करें, इस प्रकार जब तक हम यहाँ न आ जायँ तब तक आप लोग तपस्या में ही लगे रहें, इससे देवगण आप सब का संहार नही कर सकेंगे । महामहिमामय भगवान् महेश्वर से अनुकूल फल देने वाले मंत्रों को प्राप्त कर जब हम

आजायेंगे तब देवताओं के साथ युद्ध छेड़ देंगे, और तभी हम सबों को विजयप्राप्ति भी होगी।' शुक्राचार्य के दिये गये उपदेश का असुरों ने पालन किया, देवताओं के युद्ध के लिए आह्वान करने पर उन्होंने कहा, 'हम सब लोग अव संसार की झंझटों से मुख्यतया विवाद आदि से मुक्त हो गये है, आप लोग जा जाकर समस्त लोकों पर अपना अधिकार जमाइये । हम लोग तो वन मे वल्कल धारण कर तपस्या करेंगे। प्रह्लाद

  • धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः ख. पुस्तके नास्ति |