पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९१५

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८६४ वायुपुराणम् प्रह्लादस्य ततश्चादस्त्रैलोक्यं कालपर्यंयात् । पर्यायेण च संप्राप्ते त्रैलोक्ये पाकशासनः ततोऽसुरान्परित्यज्य यज्ञे देवा उपागमन् | यज्ञे देवानय गते काव्यं ते ह्यसुराब्रुवन् हतं नो मिषतां राष्ट्रं त्यक्त्वा यज्ञं पुनर्गताः । स्थातुं न शक्नुमो ह्यद्य प्रविशामो रसातलम् एवमुक्तोऽब्रवीदेतान्विषण्णः सांत्वयन्गिरा | मा भैष्ट धारयिष्यामि तेजसा स्वेन चासुराः वृष्टिरोषधयश्चैव रसा वसु च यद्वयम् | कृत्स्ना मयि च तिष्ठन्तु पादस्तेषां सुरेषु वै ॥ युष्मदर्थं प्रदास्यामि तत्सर्वं धार्यते मया ततो देवासुरान्ष्ट्वा धृतान्काव्येन धीमता | अमन्त्रयंस्तदा ते वै संविग्ना विजिगोषया एष काव्य इदं सर्वं व्यवर्तयति नो वलात् । साधु गच्छामहे तूर्णं क्षोणानाप्याययस्व तान ॥ प्रसह्य हत्वा शिष्टान्वै पातालं प्रापयामहे NIEE ॥१०० ततो देवाः सुसंरब्धा दानवानभिसृत्य वै । जघ्नुस्तैर्बध्यमानास्ते काव्यमेवाभिदुद्रुवुः ततः काव्यस्तु तान्दृष्टवा तूर्णं देवैरभिद्रुतान् | समरेऽस्त्रक्षतार्तास्तान्देवेभ्यस्तान्दितेः सुतान् ||१०१ ॥६३ ॥६४ ॥६५ ॥६६ ॥६७ ॥६८ कालक्रम से पाकशासन इन्द्र के हाथ में आया, उस समय यक्षमण असुरो को छोड़ कर देवताओं के पास आये, यक्षों के देवताओं के पास चले जाने पर असुरों ने शुक्राचार्य से जाकर कहा, आचार्य जी ! हम लोगों के देखते देखते हमारा समस्त राष्ट्र नष्ट हो गया, यज्ञादि शुभ कर्म हमें छोड़कर पुनः देवताओं के पास चले गये, ऐसी स्थिति में हम लोग यहाँ ठहर नहीं सकते, रसातल को जा रहे हैं । असुरों के ऐसा कहने पर शुक्राचार्य को बड़ा विषाद हुआ और मोठे वचन से सान्त्वना देते हुए बोले, मसुरवृन्द ! आप लोग भयभीत न हों, मैं अपने तेज से आप सबकी रक्षा करूंगा | वृष्टि ओषधियाँ, पृथ्वी, अन्न एवं अन्यान्य रत्नादि जो कुछ भी वस्तुएँ है वे सब मेरे अधीन हैं। उनका केवल चतुर्थांश देवताओं के पास हैं । उन सब को मैंने आप हो लोगों के लिए धारण किया है। 183-१७। और आप सब के कल्याणार्थ उसे आज ही समर्पित भी कर दूंगा । इस प्रकार परम बुद्धिशाली शुक्राचार्य द्वारा असुरों को सुरक्षित देखकर देवगण परम उद्विग्न हुए और विजय की इच्छा से मंत्रणा की कि यह असुरों का गुरु शुक्राचार्य अपने पराक्रम से हम लोगों के किये घरे को सब व्यर्थ कर देता है, अच्छा है, तब तक हम लोग शीघ्रतापूर्वक उन क्षीण अमृरो के ऊपर आक्रमण करते है, जब तक कि वह उन्हें सवल नही बना देते, खूब पराक्रम दिखलाकर हम पहले तो सब को मार डालना चाहेंगे, जो नहीं मर सकेंगे, बच जायेंगे, पाताल खदेड़कर छोडेंगे 18८-९६ | ऐसी सम्मति कर देवगणों ने अत्यन्त क्रुद्ध होकर दानवो पर आक्रमण किया और उनका खूब संहार किया, देवताओं द्वारा संत्रस्त होकर दानव गण शुक्राचार्य की शरण में भागे । शुक्राचार्य ने इस प्रकार देवताओं द्वारा खदेड़े गये, समर में उनके घोर शस्त्रास्त्रों की मार से क्षत- आपस में