पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९१४

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सप्तनवतितमोऽध्यायः संवृतान्दानवांश्चैव संगतान्कृत्स्नशश्च तान् । तथा विष्णुसहायेन महेन्द्रेण निर्वाहताः हतो ध्वजो महेन्द्रेण मायाछत्रश्च योधयन् | ध्वजे लक्ष्यं समाविश्य विप्रचित्तिर्महाभुजः दैत्यांश्च दानवांश्चैव संहतान्कृत्स्नशश्च तान् । रजिः कोलाहले सर्वान्देवैः परिवृतोऽजयत् यज्ञामृतेन विजितौ षण्डामक तु देवतैः एते देवाः पुरा वृत्ताः सङ्ग्रामा द्वादशैव तु | देवासुरक्षयकराः प्रजानामशिवाय च हिरण्यकशिपू राजा वर्षाणामर्बुदं बभौ । तथा शतसहस्राणि ह्यविकानि द्विसप्ततिः अशोति च सहस्राणि त्रैलोक्यस्येश्वरोऽभवत् पर्याये तस्य राजाऽनु बलिर्वर्षार्बुदं पुनः । षष्टिश्चैव सहस्राणि त्रिशच्च नियुतानि च बले राज्याधिकारस्तु यावत्कालं बभूव ह । प्रह्लादेन गृहीतोऽभूत्तावत्कालं तदाऽसुरैः इन्द्रास्त्रयस्ते विख्याता असुराणां महौजसः । दैत्यसंस्थमिदं सर्वमासीदशयुगं किल असपत्नं ततः सर्वं राष्ट्रं दशयुगं पुरा । त्रैलोक्यमव्ययमिदं महेन्द्रेण तु पाल्यते

८६३ १. एक नियुत बराबर है दस लाख के | ॥८४ ॥८५ ॥८६ ॥८७ कर रहे थे । भगवान् विष्णु की सहायता प्राप्तकर महादेव ने उन समस्त दानवों, असुरों एवं राक्षसों को समूल नष्ट किया । एक युद्ध महावलशाली विप्रचित्ति के साथ हुआ था, उसमें वह मायारूप धारण कर युद्ध कर रहा था, महेन्द्र ने उसके रथ के ध्वज को लक्ष्यकर उसे काट दिया और उसके साथ युद्ध करनेवाले समस्त दानवों, असुरों एवं राक्षसों का संहार कर दिया । देवताओं समेत रजि ने महान् कोलाहल नामक सभर के बीच समस्त असूरों को पराजित किया था। उसमें देवताओं ने यज्ञीय अमृत द्वारा असुरों के पुरोहित षण्ड और अमर्क को पराजित किया था ।८२-८६ | देवताओं और असुरों में ये हो बारह युद्ध प्राचीन काल में हुए थे; जिनमें देवताओं और असुरों का महान् विनाश हुआ था और प्रजावर्ग का भी पर्याप्त अमंगल हुआ था | दैत्यराज हिरण्यकशिपु एक अरब बहत्तर लाख अस्सी सहस्र वर्षों तक समस्त त्रैलोक्य के अधीश्वर पद पर सुशोभित था |८७-८८ उसके बाद पर्यायक्रम से वलि दैत्यों का राजा हुआ, वह एक अरब साठ सहस्र वीस नियुत | वर्ष तक राज्य पद का अधिकारी हुआ था । जितने वर्षों तक बलि राज्य पद का स्वामी था, उतने ही वर्षो तक उसके प्रह्लाद ने असुरों के साथ राज्यभार ग्रहण किया था । समस्त अनुरगणों में महाबलशाली पितामह हिरण्याक्ष, प्रह्लाद और वलि – ये तीन ही परम तेजस्वी, परम बलशाली एव इन्द्र के समान प्रख्यात थे, ऐसी प्रसिद्धि है कि दैत्यों से यह समस्त जगत् दस युगों तक आक्रान्त था, उसके बाद दस युगों तक समस्त राष्ट्र निष्कण्टक रहा, महेन्द्र इस अवनि में त्रैलोक्य की रक्षा करते थे |८६६२ प्रह्लाद के अनन्तर यह त्रैलोक्य ॥८८ ॥८६ ॥६० ॥६१ ॥६२