पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९०७

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८८६ वायुपुराणम् यः पुराणे पुराणात्मा बाराहं वपुरास्थितः । ददौ जित्वा वसुमतीं सुराणां सुरसत्तमः येन सँह वपुः कृत्वा द्विधा कृत्वा च यत्पुनः । पूर्वदैत्यो महावीर्यो हिरण्यकशिपुर्हतः यः पुरा ह्यनलो भूत्वा और्वः संवर्तको विभुः । पातालस्थोऽर्णनगतः पपौ तोगभयं दिः सहस्रचरणं देवं सहस्रांशुं सहस्रशः । सहस्रशिरसं देवं यमाहुनें युगे युगे नाभ्यरण्यां समुद्भूतं यस्य पैतामहं गृहम् । एकार्णवगते लोके तत्पडुजगपङ्कजम् येन ते निहता दैत्याः सङ्ग्रामे तारकामये । सर्वदेवमयं कृत्वा सर्वायुधधरं वपुः गरुडस्थेन चोत्सिक्तः कालनेमिनिपातितः । उत्तरांशे समुद्रस्य क्षीरोदस्यामृतोदधेः ॥ यः शेते शाश्वतं योगमास्थाय तिमिरं महत् पुरारणो गर्भमधत्त दिव्यं तपःप्रकर्षाददितिः पुरा यस् । शकं च यो दैत्यगणावरुद्धं गर्भावसानेन भृशं चकार यदाऽनिलो लोकपदानि हृत्वा चकार दैत्यान्सलिलेशयांस्तान् । कृत्वाऽऽदिदेव स्त्रिदिवस्य देवांश्चके सुरेशं पुरुहूतमेव ॥१६ ।।१७ ॥१८ ॥१६ ||२० ।।२१ ॥२२ ||२३ ॥२४ देव-नत्तम भगवान् पुराणों में पुराणात्मा के नाम से प्रशंसित है, जो सूकर का शरीर धारण कर इस पृथ्वी का उद्धार कर उसे देवताओं को समर्पित करते हैं, जो प्रभु सिंह का शरीर धारण कर और शरीर के दो भाग कर महावलशाली दैत्यराज हिरण्यकशिपु का संहार करते हैं, जिन प्रभु ने प्राचीनकाल में ऊर्व ऋषि के क्रोध से समुत्पन्न होकर और्व संवर्तक नामक अग्नि का स्वरूप धारण कर पाताल में स्थिर होकर जलमय हवि का पान किया, जिन भगवान् का वर्णन प्रत्येक युगों में सहस्र चरणोंवाला, सहस्र नेत्रोंवाला, सहल शिरोंवाला एवं दिव्यगुण सम्पन्न कहा गया है |१६-१६। सृष्टि के आदिमकाल में, जब कि समस्त लोक एक महासमुद्र के रूप में परिणत हो गये थे, जिस परमात्मा को नाभि रूप अरणी मे पितामह ब्रह्मा जी का निवास स्थान भूत पंकज (कमल) उद्भुत हुआ, जो वास्तव में पंक से जायमान नही था | तारकामय संग्राम में जिन भगवान् ने सर्वदेवमय शरीर धारण कर समस्त शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर उन अत्याचारी दानवो का संहार किया जो प्राणिमात्र को संकट में डाले हुए थे, जिन्होंने गरुड पर सवार होकर परम गर्वीले कालनेमि का संहार किया, जो शाश्वत योग का अवलम्बन कर अमृत के समुद्र क्षीर सागर के उत्तरी छोर पर शयन करते हैं, जो महान् अज्ञानान्धकार के विनाशक हैं |२०२२ । प्राचीनकाल मे जिन दिव्यगुण सम्पन्न भगवान् को अपनी कठोर तपस्या के बल पर देवताओं को माता अदिति ने गर्भ मे धारण किया दैत्यों के समूहों के चारो ओर घिरे हुए अत्यन्त परेशान इन्द्र की जिन्होंने वडी रक्षा की। जिस समय पवन ने अत्यन्त उग्र रूप धारण कर समस्त लोकों को अपने वश में कर उन उद्धत दानवों को जलशायी कर दिया था, उस समय जो आदिदेव भगवान् विष्णु स्वर्ग