पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९०६

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षण्णवतितमोऽध्यायः कर्मणामानुपूव्यं च प्राहुर्भावाश्च ये प्रभोः । या चास्य प्रकृतिः सूत तां चास्मान्वक्तुमर्हसि कथं स भगवान्विष्णुः सुरेष्वरिनिषूदनः । वसुदेवकुले धीमान्वासुदेवत्वमागतः अमरः सूत किं पुण्यं पुण्यकृद्भिरलं कृतम् | देवलोकं समुत्सृज्य मर्त्यलोकसिहाऽऽगतः देवमानुषयोनेंता भूर्भुवः प्रसवो हरिः । किमर्थं दिव्यमात्मानं मानुषे समवेशयत् यश्चक्रं वर्तयत्येको मनुष्याणां सनोमयम् | मनुष्ये स कथं बुद्धि चक्रे चक्रभृतां वरः गोपायनं यः कुरुते जगतां सार्वलोकिकम् । स कथं गां गतो विष्णुर्गोपत्वमकरोत्प्रभुः महाभूतानि भूतात्मा यो दधार चकार है। श्रीगर्भः स कथं गर्भे स्त्रिया भूचरया धृतः येन लोकान्क्रमैजित्वा त्रिभिस्त्रोंस्त्रिदशेप्सया | स्थापिता जगतो मार्गास्त्रिवर्गप्रवरास्त्रयः योऽन्तकाले जगत्पीत्वा कृत्वा तोयमयं वपुः | लोकमेकार्णवे चक्रे दृश्यादृश्येन वर्त्मना ८८५ ॥७ ॥८ IIE ॥१० ॥११ ॥१२ ॥१३ ॥१४ ॥१५ भगवान् के शरीरों से जो-जो कर्म सम्पन्न होते हैं - उन सब को हम भलोभांति सुनना चाहते हैं । उनके ऐसे कार्यों को क्रमपूर्वक हमें बतलाइये, उसी तरह उनके अवतारों के विषय में भी क्रमानुसार वर्णन कीजिये, उन सर्वव्यापी भगवान् की प्रवृत्ति के बारे में भी हमें जिज्ञासा है। कृपया हमसे वतलाइये । महा- महिमामय परम बुद्धिमान् शत्रुसंहारकारी वे भगवान् विष्णु किस प्रयोजन को सिद्धि के लिये वसुदेव के कुल में उत्पन्न होकर वासुदेव ( वसुदेव के पुत्र ) की पदवी प्राप्त करते हैं |४-८ | हे सूत जी ! इस बात को जानने की भी हमें उत्कण्ठा हो रही है कि सर्वदा पुण्यक्रमों में निरत रहनेवाले देवताओं ने ऐसा कौन-सा पुण्य कर्म किया, जिससे देव लोक को छोड़कर इस मर्त्यलोक में उन्हें आना पड़ा || देवताओं और मनुष्यों को उचित मार्ग पर लगानेवाले, भूर्भुवः आदि लोकों के उत्पत्तिकर्ता भगवान् हरि अपनी आत्मा को मानवयोनि में समाविष्ट करते हैं | १०१ चक्र धारण करनेवालों हो संसार के मानवमात्र के मनरूपी चक्र को सर्वदा परिचालित करते रहते हैं, उन्हें की इच्छा क्यों हुई ? सर्वत्र व्याप्त रहनेवाले जो भगवान् विष्णु इस समस्त चराचर जगत् की सब प्रकार से सर्वत्र रक्षा करनेवाले हैं, वे किमलिए इस पृथ्वी पर अवतीर्ण होते हैं ? और किस लिए गोओ का पालन करते हैं ? जो भूतात्मा भगवान संसार के समस्त महाभूतों ( पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि एवं वायु) को धारण करनेवाले तथा वनानेवाले हैं, जो लक्ष्मी द्वारा धारण किये जानेवाले हैं, वे एक मर्त्यलोक- निवासिनी सामान्य गृहिणी के गर्भ में किस लिये आते हैं ? जो देवताओं की इच्छा से अपने तीन पगों में तीनों लोकों को जीत कर जगत् में उत्तम तीनों वर्गों धर्म अर्थ एवं काम अथवा सत्त्व, रजस्, तमो गुणों की मर्यादा स्थिर करते है, जो अन्त काल में दृश्य और अदृश्य मार्गों से अपने जलमय शरीर द्वारा समस्त जगत् का पान कर लेने के उपरान्त समस्त लोकों को एक महासमुद्र के रूप में बदल देते हैं । ११-१५१ जो किस लिये दिव्यगुण सम्पन्न में श्रेष्ठ जो भगवान् अकेले मानव योनि में उत्पन्न होने