पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९०४

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षण्णवतितमोऽध्यायः पष्टिशतसहस्राणि वीर्यवन्तो महाबलाः | देनांशाः सर्व एवेह उत्पन्नास्ते महौजसः दैवासुरे हता ये च असुरा वै महातपाः । इहोत्पन्ना मनुष्येषु बाधन्ते सर्वमानवान् ॥ तेषासुत्सादनार्थ तु उत्पन्ना यादवे कुले कुलानि दश चैकं च यादवानां महात्मनाम् । सर्वमेककुलं यद्वद्वर्तते वैष्णवे कुले विष्णुस्तेषां प्रमाणे च प्रभुत्वे च व्यवस्थितः । निदेशस्थायिभिस्तस्य बध्यन्ते सर्वमानुषाः इति प्रसूतिवृष्णीनां समासव्यासयोगतः । कीर्तिता कीर्तनाच्चैव कीर्तिसिद्धिसभीप्सिताम् + य इदं कृष्णवंशस्य सुचरित्रस्य धीमतः । स्वर्गापवर्गदं श्रेष्ठं महापातकनाशनम् ॥ अपुत्रो लभते पुत्रं वित्तार्थी वित्तमाप्नुयात् इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते विष्णुवंशानुकीर्तनं नाम षण्णवतितमोऽध्यायः ॥६६॥ ८८३ ॥२५३ ॥२५४ ॥२५५ ॥२५६ ॥२५७ ॥२५८ प्रकार महावलशाली यदुवंशियों के कुल में तीन करोड़ सन्तानें उत्पन्न हुईं । जिनमें साठ लाख परम वलशाली एवं पराक्रमी थे । सब के सव परम तेजस्वी यदुवंशी देवताओं के अंशभूत होकर इस मर्त्यलोक में उत्पन्न हुए थे । पूर्वं देवासुर संग्राम में जो असुरगण मारे गये थे, वे ही महान् तपस्या करके पुनः मनुष्य योनि में उत्पन्न हो होकर सव को पीड़ित कर रहे थे उन्हीं सब के विनाश के लिये ये लोग यादव कुल में उत्पन्न हुए । इन परम बलवान् यदुवंशियों के ग्यारह कुल कहे जाते हैं, किन्तु जिस कुल में भगवान् विष्णु प्रादुर्भूत दुए, उसी एक वंश का अनुवर्तन शेष सभी वंशों वाले करते रहे । उन सभी वंशों में उत्पन्न होने वाले यदुवंशियों के एक मात्र प्रमाण स्वरूप एवं सर्वेसर्वा भगवान् विष्णु (कृष्ण) ही थे | उनकी आज्ञा में निरत रहकर इन सब यदुवंशियों ने उन समस्त पापामा मनुष्यों का, जो मानव समाज को उत्पीड़ित कर रहे थे, संहार किया । वृष्णिवंशियों की सन्तानों का यह विवरण कहीं संक्षेप में और कही विस्तार में मैं आप लोगों से बतला चुका । इसके संकीर्तन करने से नभीष्ट कीति एवं सिद्धि की प्राप्ति होती है । जो परम बुद्धिशाली भगवान् कृष्ण के वंश का यह श्रेष्ठ विवरण, जो स्वर्गापवर्ग प्रदान करने वाला तथा महान् पातकों का विनाशक है, पढ़ता है, वह यदि अपुत्र है तो पुत्र प्राप्त करता है और यदि धन होन है तो उत्तम सम्पत्ति लाभ करता है ।२५२-२५८। श्री वायुमहापुराण में विष्णुवंणकीर्तन नामक छानवेवां अध्याय समाप्त ||१६|| + अयं साधंश्लोकोऽधिक: ख. पुस्तके |