पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९०३

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

८८२ वायुपुराणम् ॥२४२ सङ्ग्रामजिच्च शतजित्तथैव च सहस्रजित् । एते पुत्राः सुदेव्याश्च विध्वयसेनस्य कीर्तिताः वृको वृकश्वो वृकजिद्वृजिनी च सुराङ्गना । मित्रवाहुः सुगोषश्च नाग्नजित्याः प्रजास्त्विह ॥२४३ एवमादीनि पुत्राणां सहस्राणि निबोधत | प्रयुतं तु समास्यातं वासुदेवस्य ये सुताः अयुतानि तथाऽष्टौ च भूरा रणविशारदाः । जनार्दनस्थ वंशो वः कीर्तितोऽयं यथातथम् वृहतो नर्तकोन्नयी सुनये सङ्गता तथा । कन्या स वृहदुक्थस्य शौनेयस्य "महात्मनः ॥२४४ ।।२४५ ॥२४६ ।।२४८६ तस्याः पुत्रास्तु विख्यातास्त्रयः समितिशोभनाः । अङ्गदः कुमुदः श्वेतः कन्या प्रदेता तथैव च ॥ २४७ अवगाहश्च चित्रश्च शूरश्चिनवरच यः | चित्रसेनः सुतश्वास्य कन्या चित्रवती तथा तुम्बश्च तुम्बवाणश्च जनस्तम्वस्य तावुभौ । उदाङ्गस्य स्मृतौ द्वौ तु वजारः लिए एव च

  • भूरोन्द्रसेनो सूरिश्च गवेषस्य सुतावुभो | युधिष्ठिरस्य कन्या तु सुतनुर्नाम विश्रुता

तस्यामश्वसुतो जज्ञे बज्ज्रो नाम महायशाः । वज्त्रस्य प्रतिवाहुस्तु सुचारुस्तस्य चाऽऽत्मजः काश्मा सुपार्श्व तनयं जज्ञे साम्बा तरस्विनम् | तिलः कोटयस्तु पुत्राणां यादवानां महात्मनाम् ॥२५२ ॥२५१ ॥२४६ ||२५० विख्यात थी, इन्हे जाम्बवती को सन्ततियां जानना चाहिये | २३६-२४१। संग्राम जित्, शतजित और सहस्रजित् - ये सुदेवी के पुत्र विष्वक्सेन के संयोग से उत्पन्न कहे जाते हैं। चूक, वृकश्व, वृकजित्, वृजिनो, सुराङ्गना, मित्रबाहु और सुनीथ ये नग्नजित की पुत्री सत्या की सन्तानें हैं। इसी प्रकार भगवान् वासुदेव की पुत्री की संख्या सहस्रों तक समझिये, कुछ लोग उनको संख्या लाखों तक कहते हैं। इनमें दस सहस्र जोर आठ महान सुरवीर तथा रणविशारद थे । भगवान् जनार्दन के वंश का विवरण जैसा मुझे ज्ञात था, आप लोगों से बतला चुका ।२४२-२४५॥ महान् पराक्रमी शिनिवंशीय राजा वृहदुक्थ की कन्या वृहती, जिसका नर्तकोन्नेयी दूसरा नाम है, सुनय के साथ विवाह सूत्र मे सम्बद्ध हुई | उसके तीन पुत्र युद्धस्थल में परम प्रख्यात हुए, उनके नाम थे, अंगद, कुमुद और श्वेत । श्वेता नामकी एक कन्या भी थी | अवगाह, चित्र, और सूर चित्रवर नामक जो वृष्णि वंशी थे, उनमें चित्रवर के पुत्र चित्रसेन हुए और उनको कन्या चित्रवती हुई | तुम्ब और तुम्बवान् ये दो जनस्तम्ब के पुत्र थे । उपाङ्ग के बज्रार और क्षिप्र नामक पुत्र कहे जाते हैं। गवेप ने भूरीन्द्रसेन और भूरि नामक दो पुत्र हुए । युधिष्ठिर को परम यशस्विनी सुतनु नामक जो कन्या थी, उसमे महान् यशस्वो अश्वसुतवज्र की उत्पत्ति हुई । वज्र के पुत्र प्रतिबाहु हुए, प्रतिबाहु के पुत्र सुचारु हुए २४६- २५१। काश्मा ने सुपार्श्व नामक पुत्र को उत्पन्न किया और साम्बा ने तरस्वो नामक पुत्र को उत्पन्न किया । इस

  • इदमर्ध नास्ति ग. पुस्तके |