पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८९०

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षण्णवर्तितमोऽध्यायः अक्रूरादग्रसेन्यां तु सुतौ द्वो कुलनन्दिनौ । देवश्चानुपदेवश्च जज्ञाते देवसंमितौ चित्रकस्याभवन्पुत्राः पृथुविपृथुरेव च । अश्वग्रोवोऽश्वबाहुश्च सुपार्श्वक गवेषणौ अरिष्टनेमिरश्वश्च सुवर्मा चर्मवर्मभृत् | अभूमिर्बहु भूमिश्च श्रविष्ठाश्रवणे स्त्रियौ सत्यकात्काशिदुहिता लेभे सा चतुरः सुतान् । ककुदं भजमानं च शमीकम्बलबहिषौ ककुदस्य सुतो वृष्टिव टेस्तु तनयोऽभवत् । कपोतरोमा तस्याथ रेवतोऽभवदात्मजः तस्याऽऽसोत्तुम्बुरुसखा विद्वान्पुत्रोऽभवत्किल | ख्यायते यस्य नाम्ना स चन्दनोदकदुन्दुभिः तस्माच्चाभिजितः पुत्र उत्पन्नस्तु पुनर्वसुः । अश्वमेधं तु पुत्रार्थ आजहार नरोत्तमः तस्य मध्येऽतिरात्रस्य सदोमध्यात्समुत्थितः । ततस्तु विद्वान्धर्मज्ञो दाता यज्वा पुनर्वसुः तस्यापि पुत्रमिथुनं बाहुबाणाजितः किल । आहुकश्चाऽऽहुकी चैव ख्यातौ मतिमतां वरौ इमांश्चोदाहरन्त्यत्र श्लोकाम्प्रति तमाहुकम् | सोपासङ्गानुकर्षाणां सध्वजानां वरूथिनाम् ॥११२ ॥११३ ॥११४ ॥११५ ॥११६ ॥११७ ॥११८ ॥११६ ॥१२० ॥१२१ यसुदेवा नाम को एक कन्या भी थी |१०६-१११ | अक्रूर के संयोग से उग्रसेनी में दो परिवार को आनन्द देनेवाले सुपुत्र उत्पन्न हुए, उनके नाम थे देव और अनुपदेव । ये दोनों पुत्र देवताओं के समान गुणशाली ये । चित्रक के जो उत्पन्न हुए, उनके नाम थे, पृथु, विपृथू, अश्वग्रीव, अश्वबाहु सुपावक, गवेषण, अरिष्टनेमि, अश्व, सुवर्मा, चर्मभृत्, वर्म॑भृत्, अभूमि और बहुभूमि । श्रविष्ठा और श्रवणा नामक दो स्त्रिय थीं । काशिराज को कन्या ने सत्यक के संयोग से चार पुत्रों को प्राप्त किया जिनके नाम थे ककुद, भजमान, शमी और कम्बलबहिष् । ककुद के पुत्र वृष्टि थे, वृष्टि के पुत्र का नाम कपोतरोमा था । कपोतरोमा का पुत्र रेवत था । उस रेवल का पुत्र तुम्बुरुसखा हुआ, जो परम प्रसिद्ध विद्वान् था, इसी के नाम चन्दनोदक दुंदुभि भी ख्यात थे । ११२-११७। उसका पुत्र अभिजित हुआ, उस अभिजित से पुनर्वसु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिये अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया था, उस यज्ञ को वेदी के मध्य भाग से पुनर्वसु का प्रादुर्भाव हुआ था जिसके कारण पुनर्वसु परम विद्वान् धर्मज्ञ, दानशील हवन कर्ता थे । उन पुनर्वसु के दो जुड़वा सन्तान उत्पन्न हुए - ऐसी प्रसिद्धि है, जिनके नाम अपने बाहुबल तथा बाणों से कभी पराजित न होनेवाले आहुक तथा आहुकी थे- ये दो के दोनों बुद्धिमानो मे अग्रगण्य थे | उस आहुक के लिये पुराने लोग कुछ श्लोकों का गान करते हैं। जिनका आशय इस प्रकार है। वे महाराज आहुक मेघों के समान भीषण रव करनेवाले, समस्त रणसामग्रियों से सुसज्जित, प्रत्येक अवयवों से सुसंगठित, ध्वजाओं और कवचों से सुरक्षित दस सहस्र रथों से तथा सुन्दर श्वेत वर्ण के परिच्छद से सुशोभित, किशोर अवस्थावाले, दस सहस्र अस्सी अश्वों से परिवेष्टित होकर रण मे लाक्रमण करते थे । उसके वंश में उत्पन्न होनेवाले मे से कोई भी ऐसा नही हुआ, जो असत्यवादी