पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८८९

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६६८ वायुपुराणम्

  • माद्यासुतस्य जज्ञे तु सुतः पृश्निर्युधाजितः । जज्ञाते तनयौ पृश्नेः स्व (श्व ) फल्कश्चित्रकश्च यः ॥ १०१

स्व ( शव ) फल्फस्तु महाराजो धर्मात्मा यत्र वर्तते । नास्ति व्याधिभयं तत्र न चावृष्टिभयं तथा ॥ १०२ कदाचित्काशिराजस्य विभोस्तु द्विजसत्तमाः | त्रीणि वर्षाणि विषये नावर्षत्पाकशासनः ॥१०३ स तत्र वासयामास स्व ( श्व ) फल्कं परमाचितम् । स्व (श्व ) फल्क परिवासेन प्रावर्षत्पाकशासनः । १०४ स्व ( श्व ) फल्क: काशिराजस्य सुतां भार्यामनिन्दिताम् । मान्दिनीं नाम गां सा हि ददौ विप्राय नित्यशः ॥ सा मातुरुदरस्था वै बहुवर्षशतान्किल | वसति स्म न वै जज्ञे गर्भस्थां तां पिताऽब्रवीत् ।१०६ जायस्व शीघ्र भद्रं ते किमर्थं चापि तिष्ठसि | प्रोवाच चैनं गर्भस्था सा कन्या गौदिने दिने ॥१०७ यदि दत्ता तदा स्यां हि यदि स्वामीहतां पितः । तथेत्युवाच तां तस्याः पिता काममपुपुरत् ॥१०८ दाता यज्वा च शुरश्च श्रुतवानतिथिप्रियः | तस्याः पुत्रः स्मृतोऽकूरः स्वः (श्व ) फल्को भूरिदक्षिणः ॥ उपमङ्गुस्तथा मङ्गु दुरश्चारिसेजयः । गिरिक्षस्ततो यक्षः शत्रुघ्नो वारिमर्दनः धर्मभृच्च शुष्टचयो वर्गमोचस्तथाऽपरः | आवाहप्रतिवाहौ च वसुदेवा वराङ्गना ॥११० ॥१११ अपना से विख्यात पुत्र हुआ | पृश्नि के स्वफल्क और चित्रक नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए । महाराज स्वफल्क परम धर्मात्मा थे, वे जहाँ पर विद्यमान रहते थे, वहाँ पर व्याधियों तथा अनावृष्टि का भय नहीं रहता था। द्विजवर्य- वृन्द ! एक बार कभी सर्वसमर्थ काशिराज के राज्य में इन्द्र ने तीन वर्ष तक लगातार वृष्टि ही नहीं की। काशिराज ने परम सम्माननीय महाराज स्वफलक को अपने यहाँ बुलाकर निवास करवाया, स्वफल्क के वास करते ही इन्द्र ने वहाँ पर वृष्टि को । स्वफल्क ने काशिराज की परम सुन्दरी कन् गान्दिनी के सा विवाह किया था, गान्दिनो प्रति दिन ब्राह्मणों को गोदान करतो थो ११८-१०५। ऐसा कहा जाता है कि गान्दिनी अपनी माता के गर्भ में अनेक सौ वर्षों तक रही, उत्पन्न नहीं हुई, गर्भावस्था में अवस्थित उससे पिता ने कहा, गर्भस्थ सन्नान ! तुम शीघ्र उत्पन्न हो, तुम्हारा कल्याण हो, तुम किस लिये गर्भ में निवास कर रहे हो ।' राजा की ऐसी बातें सुनकर गर्भावस्था में ही कन्या ने उत्तर दिया, पिता जी ! यदि आप प्रतिदिन गौओं का दान करें तब मैं उत्पन्न होऊंगी।' पिता ने 'बहुत अच्छा' कहकर कन्या की मनः कामना पूर्ण की ! उसी गान्दिनी के स्वफलक के संयोग से परम दानी, परम यज्ञकर्ता, शूरवीर, वेदज्ञ, अतिथिसेवक, अक्रूर उत्पन्न हुए । महाराज स्वफल्क भी परम दानी थे । अक्रूर के अतिरिक्त स्वफल्क के अन्य पुत्र भी उत्पन्न हुए, जिनके नाम ये हैं - उपमंगु, मंगु, मृदुर, अरिमेजय, गिरिरक्ष, यक्ष, शत्रुघ्न, अथवा अरिमर्दन, धर्मभृत, शृष्टचय, वर्गमोच, आवाह तथा प्रतिवाह । इनके अतिरिक्त परमसुन्दरी

  • नास्त्यर्घमिदं क पुस्तके |