पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८९१

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वायुपुराणम् स्थानां मेघघोषाणां सहस्राणि दशैव तु | नासत्यवादी त्वासीत्त नायज्वा नासहस्रदः नाशुचिर्नाप्यधर्मात्मा नाविद्वान्न कृशोऽभवत् । आहुकस्य धृतिः पुत्र इत्येवमनुशुश्रुम श्वेतेन परिचारेण किशोरप्रतिमान्यान् | अशीतिमश्वनियुतान्याहुकप्रतिमोऽव्रजत् पूर्वस्यां दिशि नागानां भोजस्थ प्रतिमोऽभवत् । रूप्यकावनकक्षाणां सहस्राण्येकविंशतिः तावन्त्येव सहस्राणि उत्तरस्यां तथा दिशि । भूमिपालस्य भोजस्य उत्तिष्ठेत्किङ्किणी किल आहुकचाऽऽहुकान्धाय स्वसारं त्वाहुकी ददौ । आहुकान्धस्य दुहिता हौ पुत्रौ संबभूवतुः देवकश्चोग्रसेनश्च देवगर्भसमावुभौ । देवकस्य सुता वोरा जज्ञिरे त्रिदशोपमाः देवानामपि देवश्च सुदेवो देवरञ्जिता | तेषां स्वसारः सप्ताऽऽसन्वसुदेवाय तां ददौ वृकदेवोपदेवा च तथाऽन्या देवरक्षिता | श्रीदेवा शान्तिदेवा च महादेवा तथाऽपरा सप्तमी देवकी तासां सुनामा चारुदर्शना । नदोग्रसेनस्य सुताः कंसरतेषां तु पूर्वजः न्यग्रोधश्च सुनामा च कद्वशंकुश्च भूमयः । सुतनू राष्ट्रपालश्च युद्धात्तुष्टः सुपुष्टिमान् ८७० ॥१२२ ॥१२३ ॥१२४ ॥१२५ ॥१२६ ॥१२७ ॥१२८ ॥१२६ ।।१३० ॥१३१ ॥१३२ हो यज्ञादि का अनुष्ठान न करता हो, एक सहस्त्र से कम दान करनेवाला हो, अपवित्र हो, अधर्मी हो, मूर्ख हो अथवा दुर्वल शरीर वाला हो अर्थात् उसके वंश में उत्पन्न होनेवाले सव उपर्युक्त सव अवगुणों से सर्वथा रहित थे | उस महाराज आहुक के पुत्र घृत हुए - ऐसा हम लोगों ने सुना है | ११८-१२३। आहुक ने पूर्व दिशा में सुवर्ण और चाँदी के आभूषणो से सुसज्जित इक्कीस सहस्र हाथियों की बलवान् सेना लेकर भोजराज की समानता को थी, इसी प्रकार उत्तर दिशा में भी उतनी ही सेनाएँ लेकर भोजराज के ऊपर आक्रमण किया था, जिसमें उसकी किंकणी (पैर के घुंघुरू) उठ पड़ी थी - ऐसी प्रसिद्धि है । उस महराज आहुक ने अपनी बहिन आहु की को आहुकान्ध को समर्पित किया था, उसके संयोग से आहुकान्ध को एक पुत्री तथा दो पुत्र उत्पन्न हुए। उन दोनो पुत्रो के नाम देवक तथा उग्रसेन थे, ये दोनों पुत्र देवताओं के गर्भ (वच्चों) के समान प्रभावशाली तथा सुन्दर थे |१२४-१२७३६३ । देवक के जो पुत्र उत्पन्न हुए वे देवताओं के समान प्रभावशाली, सुन्दर तथा शूरवीर थे, इनके नाम थे देवदेव, देव और देव जिता । उनकी सात बहने भी थी, जिन्हें उन्होंने वसुदेव को समर्पित किया था, उनके नाम थे, ' वृकदेवा, उपदेवा, देवरसिता, श्रीदेवा, शान्तिदेवा, महादेवा तथा देवको। देवकी इन सबों में देखने मे परम सुन्दरी थी | उग्रसेन के नव पुत्र थे जिनमें कंस सबसे बड़ा था । १२८-१३१। उन सबों के नाम थे, न्यग्रोध, सुनामा, कद्वशंकु, भूमय, सुतनु, राष्ट्रपाल, युद्धात्तुष्ट और पुष्टिमान् | इन नवों भाइयों को पाँच बहिनें भी थी, जिनके नाम थे कर्मवती, धर्मवती, शतांकु, राष्ट्रपाला और सुन्दरी कङ्क्षा | उग्रसेन महान्